STORYMIRROR

sargam Bhatt

Others

4  

sargam Bhatt

Others

दिल का दर्द

दिल का दर्द

1 min
208

जिसको मैंने अपना समझा,

उसी ने मुझे पराया कर दिया।

यह जिंदगी का खेल है,

इस खेल ने मुझे बेबस कर दिया।

मैं कैसे भूलूं उसको,

उसकी यादों ने दिल पर कब्जा किया है।

याद भी मैं उसको कैसे रखूं,

मेरे अतीत ने मुझे बड़ा सदमा दिया है।


इस अतीत से निकलना चाहती हूं,

लेकिन मुझे इसने अपना बना लिया है।

धीरे-धीरे ही सही लेकिन इसने,

मेरे पंखों को कुतर दिया है।

मैं मीरा बन गई जिसके प्यार में,

वो कभी समझा नहीं मुझे,

अपने एतबार में।


शायद इसीलिए?

आंखों में आंसू बहुत है,

अब मैं सुखाना चाहती हूं।

माथे पर भार बहुत है,

अब मैं उतारना चाहती हूं।

हाथों में बेड़ियां हैं,

अब मैं तोड़ना चाहती हूं।

पैरो में जंजीरे हैं,

उससे मैं निकलना चाहती हूं।

दिल में यादें बहुत है,

अब मैं भूलना चाहती हूं।

लफ्जों में खामोशी है,

अब मैं मुस्कुराना चाहती हूं।

दिल में दर्द बहुत है,

अब मैं छिपाना चाहती हूं।

इंसान हो गए मौसम की तरह,

अब मैं भी बदलना चाहती हूं।



Rate this content
Log in