क्यों हम गांव भूल गाए, क्यों गांव में देखे गए सपने धूल हो गए। क्यों हम गांव भूल गाए, क्यों गांव में देखे गए सपने धूल हो गए।
मेरे पितृ के बाणों "अर्जुन" से अभिमन्यु मरते नहीं। मेरे पितृ के बाणों "अर्जुन" से अभिमन्यु मरते नहीं।
अकेली ही सही तसकीन तो थी, दूर कहीं मंज़िल थी, उसी की कही क़रीब में में थी। अकेली ही सही तसकीन तो थी, दूर कहीं मंज़िल थी, उसी की कही क़रीब में में थी।