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Dinesh paliwal

Others

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Dinesh paliwal

Others

।। चुनाव।।

।। चुनाव।।

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फिर चुनावों का है मौसम,

टोपियों ने बदले हैँ रंग,

आज फिर बिखरा फिज़ा में,

अनगिनत वादों का संग,

फिर से जाति धर्म अब,

पहचान बन सब आ रहे,

हर चेहरे हैं कितने मुखौटे,

बेखौफ हो मुस्का रहे।।


आज हरिया का भी दिन है,

है आज अब्दुल की भी शान,

पूछता जिन को न कोई,

हर मंच अब उन का बखान,

सज गई कितनी दुकानें,

अब मुफ्त की उम्मीद से ,

ईद जैसे आ गयी हो,

बिन चांद ही के दीद से।।


व्याध ने है फिर जाल फेंका,

ओ मुसाफिर तू संभल,

जो हाथ थे झाड़ू लिये,

हैं खड़े अब ले कमल,

इनका न कोई धर्म है,

ना बाकी कोई ईमान है,

इनके लिये बस एक वोट तू,

येही तेरी पहचान है।।


चाहते ये बनने विधाता,

रख भाग्य को गिरवी तुम्हारे

सोच तेरी कर के कुंठित,

जो तू रहे इन के सहारे,

खोखली हों तेरी समझ,

इनका यही बस जोर है,

कहते जुबां से तुझको जनार्दन,

पर सच कहूं कमजोर है।।


इस बार तू भी आजमाले,

इक बार अपने ईमान को,

जा दिखा दे उनको ताकत,

जो तोलते निज सम्मान को,

ना जऱ न खैरात से डिग अब,

न डर अब किसी के खोट से,

भाग्यविधाता तू खुद का बन,

कर प्रहार अब वोट से ।।


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