चल सहेली
चल सहेली
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चल मेरी सहेली...
गलबहियाँ डाले
लौट चलें बचपन की
उन गलियों में
काँधे पर पंख लगाकर
उड़ चलें ख़्वाबों की दुनिया में
जहाँ झूले पर पीगें मारते हुए
छूना चाहते थे आसमां
जहाँ रोज कट्टी रोज मुच्ची करते थे
जहाँ बोते थे ख़्वाब
जहाँ उगाते थे ख़्वाबों के दरख्त
जहाँ चंदा मामा के साथ दूध भात खाते थे
जहाँ उजास ही उजास बिखरी थी
हर दिन खुशियों भरा था
रातें चाँदनी बिखेरती थी
चल मेरी सहेली...