छठ पूजा-प्रकृति पूजा महापर्व
छठ पूजा-प्रकृति पूजा महापर्व
रह संरक्षण में सदा प्रकृति के और
इसे कर संरक्षित करें निज उद्धार।
अनेक पूजा पद्धतियां इस निमित्त
हैं उत्सव विविध, विविध त्यौहार।
कार्तिक-चैत्र में फसल कटाई, है होती दो बार
खरीफ-रबी को काट, प्रकृति पूजता है हर द्वार।
षष्टी तिथियां शुक्ल पक्ष की, देतीं हमको हर्ष अपार,
मां षष्ठी भगिनी सूर्यदेव की, इनके पूजन से उद्धार।
देश में प्राचीन काल से ही इस षष्ठी पूजन की परंपरा के
सीता-कर्ण-द्रोपदी द्वारा पूजा के मिलते पौराणिक आधार
पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन का प्रियव्रत नृप को
महर्षि कश्यप ने दिया था एक बड़ा ही उत्तम श्रेष्ठ विचार।
मृत पुत्र जन्मा महारानी ने, नहीं रहा था शोक का पारावार,
षष्ठी माता द्रवित हुईं, श्मशान में दीन्हा निज विमान उतार।
जीवन दान दिया मृत शिशु को छूकर, कीन्हा बड़ा ही उपकार,
आभार प्रदर्शन करने को माता का, सदा मनाया तब से त्यौहार।
विशेष महत्व है कार्तिक शुक्ल षष्ठी की तिथि का
पूजते हम मां प्रकृति को, प्रकट करते हम हैं आभार।
सकल आर्यावर्त उल्लास और असीम खुशी मनाता
उद्गम है गसका प्राची उत्तर प्रदेश और सकल बिहार।
छत्तीस घंटे के निर्जला व्रत को निभाकर
पूरा होता कठिन चार दिवस का ये त्यौहार।
श्रद्धा और दृढ़ संकल्प परीक्षा की कसौटी
खरा उतर दर्शाते प्रकृति प्रेम का शुद्ध विचार।
धरती की हर छोटी-मोटी घटना का,
एकमात्र सूर्यदेव जी ही तो हैं आधार।
प्राणी जगत हो या हो जगत वनस्पति
इन सबकी ऊर्जा का है सूरज ही भंडार।
उगते हुए सूर्य को जल अर्पित करना
है हम सब ही आर्यों का उत्तम संस्कार।
ब्रह्म मुहूर्त में तज देता जो शयन क्रिया को
दैहिक-मानसिक स्वास्थ्य में होगा सदा सुधार।
ज्यों वन को शेर और शेर को वन ज्यों
संरक्षित कर इक दूजे का करते हैं उद्धार।
बचा के प्रकृति को हम सब खुद को बचाएं
तब ही तो हो पाएगा सुखमय ये सारा संसार।