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चाय बनाम प्यार

चाय बनाम प्यार

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ये चाय कोई आम चाय नहीं ये तो वो चाय है जो तुम अक्सर शाम को माँगा करते थे।

जैसे थकेहारे तुम चाय चाहिए बड़े हक़ से बोलते थे।


वो कप भी तुम्हारे नाम से पहचाने जाने लगा था।

ज़िन्दगी की माथा पच्ची से दिमाग जब खप जाता था चाय मांग लेते थे।

वो चाय कोई आम चाय नहीं वो तो शाम का संकेत होती थी कि हाँ अब शाम हो गई।


चाय में अदरक घोल के उसका रस चूसती चाय पत्ती और फिर

गर्म गर्म कप में परोसी जाती और फिर वो खुशी तुम्हारे चेहरे पे, सब यादें हैं।

ये चाय कोई आम चाय नहीं ये तो वो चाय है जो तुम अक्सर शाम को माँगा करते थे।


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