बसंत के रंग
बसंत के रंग
पतझड़ की मारी सूखी शाखों पर कुनी कुनी मंजरियों की उत्पत्ति होते ही,
फागुन रथ पर सवार होते छड़ी पुकारती बसंत की सवारी आ रही होती है..
गुलमोहर की टहनियों पर राती बूटियाँ सनसनाती हवाओं संग हिलौरे खाती मुस्कुराती बैठी है,
हरसू हरियाली की मानों किलकारियां गूँज रही होती है..
महुए की ड़ारी पर कोयल कूहू की सरगम है गाती, आशिक तितली
पराग प्यासी कलियों को चूमकर फूल बनाती बसंत के स्वागत में सजाती हर एक ड़ाली बुन रही होती है..
पलाश की हर वृंत पर चढ़ती केसरिया कसूँबल भात होली के रंगों में मिलकर
गोरी के गालों पर घूलती शर्मिली शगुन बनकर खिल रही होती है..
पंछियों के इश्क का प्यारा मौसम अंबिया की हर डाल-डाल पर सोने सी कलियाँ खिलाता,
खेतों में भी छोटी बिटिया पात-पात में मोती भर रही होती है..
भँवरे की गुनगुन गूँजन से बगियां खिलती ऋतुराज सी मोहक दिसती मधुमालती
धरती का शृंगार करती हरियाली बिखेर रही होती है।
