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Yogeshwari Arya

Abstract

4  

Yogeshwari Arya

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बस मैं अकेली जान

बस मैं अकेली जान

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बहुत भयावह था वह दिन 

जब जागने के बाद 

सिर्फ सन्नाटा था।


            ऐसा प्रतीत हुआ मानों

            धरती रुक सी-गई हो

            और उसी की धरती पर

            थी बस मैं अकेली जान।


ना चिड़ियों की चह-चहाहट 

ना गाड़ियों की सर-सराहट

ना हवाओं की गर्माहट 

और ना इंसानों की आहट।


            ऐसा प्रतीत हुआ मानों

            फिर से शीत युग आ गया हो

            एक पल तो दिल दहल-सा गया

            सांसे थम-सी गई, क्योंकि 

            थी बस मैं अकेली जान।


हर ओर देखा, हर छोड़ देखा 

हर राहे देखी, हर दरवाजे देखें

किंतु मिला बस क्या, एक अंतहीन सन्नाटा 

हृदय की गति तेज हो गई, मन की शांति भंग

हो गई, और आंखें नम हो गई।


            ऐसा प्रतीत हुआ ना मानों 

            दुनिया खत्म हो गई 

            जिंदगी नष्ट हो गई 

            और अरमानों की सांस दब-सी गई।



लेकिन तभी मेरी आंखें खुल गई

भला हो यहां स्वप्न था

अगर सत्य होता तो क्या करती?

बस मैं अकेली जान।


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