बोलना फ़िज़ूल नहीं
बोलना फ़िज़ूल नहीं
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लौट आते हैं जब मेरे आवाजें मेरे ही पास
समझ जाता हूँ में, मेरा बोलना फ़िज़ूल नहीं।।
सुना तो होगा, समझा भी होगा जरूर
देर से असर करता, ये दवा फ़िज़ूल नहीं।।
मुआफ़ करना बोलना नहीं चाहते हैं जो
गलतियों पर उन्हें टोकना फ़िज़ूल नहीं
पत्तों को सरका कर जमीं पे बैठा है धूप
फिसलती वक्त पे नज़र रखना फ़िज़ूल नहीं।।
बिक जाते है लोग टिक जातीं सरकारें
मतदान अपना करना फ़िर भी फ़िज़ूल नहीं।।
आसाँ नहीं है मंज़िल, मालूम हो भी अगर
कोशिशें कायम रखना फ़िर भी फ़िज़ूल नहीं।।
लगे अगर फ़िज़ूल किसी को किसी का बात
अनदेखा कर निकल जाना भी फ़िज़ूल नहीं।।
