बंधुआ मजदूर
बंधुआ मजदूर
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आज बंधुआ मजदूर है सब,
बस अपनी इक्छाओ के,
गुलाम बन बस होड़ मची है,
चाँद कागज कमाने की,
भूल कर बस खुद से मुलाकातें,
मरीचकाये सजाने की,
जब आये पास में इसके,
मिथ्या नज़र आता है,
बंधुआ मजदूर सा मन,
फिर कितना अकुलाता है।