बनाते क्यों हो
बनाते क्यों हो
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निभा नहीं सकते तो बनाते क्यों हो
रिश्ते होते हैं निभाने के लिए
बात बात पर भुनाते क्यों हो
स्वार्थ, चालाकी से नहीं चलते रिश्ते
प्रेम नहीं है तो लुभाते क्यों हो
सुख दुख में साथ देना होता है
दुख में दामन छुड़ाते क्यों हो
सुख में तो खूब आते जाते रहे
झूठे कसमें वादे करते क्यों हो
एक तरफा नहीं निभते रिश्ते
ताली और चुटकी में फर्क है
समझते नहीं क्यों हो
पैसा बहुत कुछ होता है मगर
रिश्तों में रुपया मिलाते क्यों हो
हर रिश्तों में आती है कभी न कभी दरार
भरना चाहिए समर्पण से
दरारों को भरने से पीछे हटते क्यों हो?