भूख
भूख
ऐसी वैसी दास्ताँ नहीं बल्कि
घर घर की कहानी है।
एक बूढ़ा बैठे रो रहा और,
आँखों में जिसके पानी है।
भूख मिटाने के लिए जो,
दिन भर भागता रहा और,
सपनों को पाने के लिए,
वो रात भर जागता रहा
किमत पता है बाप को भूख की,
जो दिन भर कमाकर लाता है।
वहीं बेटा फेंक रहा है खाना ,
जिसका बाप चावल भी,
हमेशा गिन गिनकर खाता है।
भूखा था जो वो भटक कर,
खाना दिन भर तलाशता रहा।
पेट भरता रहा जिसका,
वो खाना फेंकने के लिए,
कोई जगह तलाशता रहा।
इस भूख का बोलबाला है बड़ा,
कई लोगों को बदनाम किया है।
कोई दान में दे रहा है खाना,
तो किसीने खाना चोरी किया है।
कौन सही और कौन गलत,
बताना जरा सा मुश्किल है।
खाना ना मिलने और भूख लगे,
तो सुधर जाना भी मुमकिन है।