STORYMIRROR

बहरूप

बहरूप

1 min
216


कौन आना है

अपना मुखौटा हटाकर

सभी ओढ़े है

बहरूप से मुखौटे

ढाँप लिया है सबने

अपने ज़मीर को

अपने वक़ार को

अपने अज़्म को

गिरा दिया है सबने

अपने आप को

इंसानियत के म्यार से

हिंसा नहीं तो स्वार्थ नहीं

अहिंसक पशु को

दबोचे अपने पंजों में

यह मानवीय बहरूप का देवता

इंसानियत का दुश्मन इंसान

नहीं जानता अभी

अपनी असल शख्सियत को

और मौन कर रहा है

बारिश की बूंदों को

जो अभी बरसने को आतुर है

लेकिन इसकी दुर्दन्ता से

अधीर हो बहकने से बोझिल

अभी नभ में ही अटकी

ताक़ रही है

ज़मीन की और


Rate this content
Log in