बहरूप
बहरूप
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कौन आना है
अपना मुखौटा हटाकर
सभी ओढ़े है
बहरूप से मुखौटे
ढाँप लिया है सबने
अपने ज़मीर को
अपने वक़ार को
अपने अज़्म को
गिरा दिया है सबने
अपने आप को
इंसानियत के म्यार से
हिंसा नहीं तो स्वार्थ नहीं
अहिंसक पशु को
दबोचे अपने पंजों में
यह मानवीय बहरूप का देवता
इंसानियत का दुश्मन इंसान
नहीं जानता अभी
अपनी असल शख्सियत को
और मौन कर रहा है
बारिश की बूंदों को
जो अभी बरसने को आतुर है
लेकिन इसकी दुर्दन्ता से
अधीर हो बहकने से बोझिल
अभी नभ में ही अटकी
ताक़ रही है
ज़मीन की और