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अरविन्द त्रिवेदी

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अरविन्द त्रिवेदी

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बहन

बहन

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पराजय को बदलकर 

जीत वह साकार कर देती,

उपस्थिति को हमारी वह 

स्वयं उपहार कर देती,

पिरोकर नेह अपना 

बाँधती राखी कलाई पर,

बहन पगधूलि से अपनी 

सुखद संसार कर देती।।


पवन बन ज़िन्दगी से 

दर्द की बदरी हटाती है।

अधर भर मुस्कुराहट वह 

सदा आँगन सजाती है।

लगाकर माथ पर टीका 

दुवाओं से नवाजे वह -

दुखों की धूप बहना 

निज दुलारों से घटाती है।।


   


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