बगावत !
बगावत !
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तुमसे प्रेम करके मैंने
जितना खुद को बदला है
तुम्हारी मज़बूरियों और
इच्छाओं के प्रमादी प्रमेय
के हिसाब से तुम उतना ही
अनुपातों के नियम को धता
देकर सिद्ध करती रही कि
चाहतों के गणित को सही
सही समझना मेरे बस की
बात नहीं पर तुम्हें कैसे और
किन शब्दों में बताऊँ मैं की
मैंने समझा भी सही और
किया भी सही पर तुम अब
तक स्वीकार नहीं पर पायी
कि प्रेम में बगावत निहित है !