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बेकसूर मेरे दिल को

बेकसूर मेरे दिल को

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उनकी हर बात

मुझे याद है

जानता हूँ

उन्हें

खबर भी नहीं

अंजान बने बैठे हैं,


नादान की तरह

मासूम चेहरा

भोली सी सूरत

सिर झुकाये हुए,


कातिल अदायें

बिखरी सी जुल्फें

नीची निगाहें

उनका जुर्म

कुबूल करती थी


उनकी नज़रे

जैसे आज भी

मुझे ही देखती है

पल-पल,हरपल

सिर्फ उनका ही

चेहरा नजर आता था


सितमगर ने

सितम इतना ढाया

बेकसूर मेरे दिल को

बहुत रूलाया


शर्मसार हो गया

सब नष्ट हो गया

उनके दूर होने से

उनकी वो

मोहब्बत भरी बातें


वे मुलाक़ातें

सब याद है

कुछ भी भुला

नहीं हूँ

सोचता हूँ

तड़पता हूँ

क्यों इतना सताया

उसने

बेकसूर मेरे दिल को।


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