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मिली साहा

Abstract Tragedy

4.8  

मिली साहा

Abstract Tragedy

बचपन की दोस्ती

बचपन की दोस्ती

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रंगीन ख़्वाबों से भरी थी वो खूबसूरत सी दुनिया हमारी,

किसी गुलाब की तरह महका करती थी बचपन की यारी,

साथ खेलना, स्कूल जाना, हर पल मिलने का ढूंढे बहाना,

बस नासमझी, शैतानियाँ कहाँ जानते थे हम दुनियादारी,


न मोबाइल था न इंटरनेट पर एक दूसरे के लिए था वक्त,

भविष्य की कहाँ चिंता हमें ज़िन्दगी नहीं थी इतनी सख्त,

दोस्त की बस एक पुकार पर ही चले जाते दौड़े-दौड़े हम,

पर वो दोस्ती हमारी जीवन की उलझनों में हो गई विरक्त,


वक्त की रफ़्तार में कब बिछड़ गए हम हुआ ना एहसास,

केवल याद बन कर रह गए वो पल जो हुआ करते खास,

भविष्य की चिंता में कभी मुड़कर ही नहीं देख पाए पीछे,

कि हो रहे हैं वो दोस्त दूर जो कभी रहते थे दिल के पास,


जिंदगी के इम्तिहान कम नहीं सफ़र में आगे ही बढ़ते गए,

जितना हम आगे निकले दोस्त उतनी ही दूर होते चले गए,

नई मंजिल, नए लोग, हर मोड़ पर बनती एक नई पहचान,

इस कशमकश में दोस्ती के एहसास जाने कहाँ बिछड़ गए,


रिश्ते, परिवार, शादी, कैरियर, यही बन गई हमारी दुनिया,

दोस्त क्या बिछड़े भूल गए बनाना वो कागज़ की कश्तियाँ,

होती है बारिश हर वर्ष पर वो एहसास कहाँ दोस्तों के बिना,

वक्त के साथ खत्म होती ही गई वो बरसात वाली मस्तियाँ,


ना कभी दोस्तों ने दी आवाज़ ना कभी हमने उन्हें पुकारा,

अब इस मोड़ पे आकर हम ढूंढ रहे उन यादों का किनारा,

खुद को ही कोस रहे क्यों ना रुके दो पल हम उनके लिए,

बचपन की दोस्ती जिसके बिना दिल का कोना है बेसहारा।


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