औरतों के सुख
औरतों के सुख


औरतों के हिस्से हमेशा दुख ही नहीं होते
सुखों की पोटली भी साथ लिये चलती हैं
ये बस दिखाती नहीं
ये जानती हैं कि इससे कहीं फर्क नहीं पड़ता
इनको कोई नहीं समझता तो फिर
तो इस तरह से ये कस्तूरी इनका स्वाभिमान हो जाती है,
चलते-चलते चींटियों से पांव बचा लेना
आंचल की अठन्नी को गुल्लक में डालना
भोरे उठकर सूरज को सबसे पहले निहारना
उनींदी पलकों में सपने का छूट गया हिस्सा सहेजना
और ये सोचकर मुस्कुराना कि ये अगली नींद का उधार है
इनका सुख,
खुद के साथ एक कप गरम चाय की फुर्सत
मनचाही किताब के कुछ पन्ने
एक सुंदर रुमानी कविता की दिल छू लेने वाली पंक्तियां
अकसर मुकेश पर कभी-कभी रफी या किशोर
या फिर आबिदा परवीन को सुनती
उधड़ती सिलती रहती हैं ये
कि इनके आंखों की हल्की नमी और सबसे छुपकर
होठों के कोरों पर उपजी उदास मुस्कान
इनका सुख,
बारिश का एकांत और अतीत के जंगल में भटकती ये
कि जब कोई बीरबहूटी का सा अक्स भी झलके
ये दुपट्टा निचोड़ देती हैं
मिट्टी से मन जोड़ लेती हैं
दराजों क
ो उलटते -पलटते गर मिल जाये वो पुरानी डायरी
तो खुरचकर छुपाये गये एक नाम के साथ
ये खुद भी छिप जाती हैं
कि पल भर को बढ़ी धड़कन और खनकती देह
इनका सुख,
इनके सुंदर सुघड़ जीवन के पीछे न जाने कितने ताले
कितनी कुंजियां हैं और कितनी बेड़ियां
ये उनका जिक्र नहीं करतीं
कुरेदकर पूछे जाने पर भी हँसकर टाल देती हैं
कि ये अपनी अना की किर्चियों का गीला टुकड़ा हैं
इन्हें हमेशा मुस्कुराते, ठहाके लगाते,
औरतों की आजादी पर बात करते
या कई बार मजलिसों में मुख्य अतिथि के तौर पर
तकरीरें करते सुना जा सकता है
ये समझदारी से सब कुछ नियंत्रित किये रहती हैं
कि असल जीवन के स्याह पर दमकता
इनका सुफेद चमकीला आवरण
इनका सुख,
इनका सुख
कई बार इनकी मकानों की दरारों में
उग आया नन्हा पीपल होता है
जिसे बस एक दिन की मोहलत दे
अगले रोज ये दांत दबा आंखें बंद कर धीरे से उखाड़ फेंकती हैं
कि घर की दीवारें और छत सलामत रहें
कि घर की सुंदरता और सम्मान सलामत रहे,
औरतें ऐसे ही अनगिनत सुखों से भरी एक मोहक झील हैं।