औरत
औरत
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बयां नहीं कर सकती इसमें, वैसे तो बहुत जोश है
औरत और कलम आज ना जाने क्यों खामोश है।
कमजोर समझते हैं जो औरत जात को,
यह तो सीधा-सीधा मानसिकता का ही दोष है।
गाथा इनकी लिखूँ, जो चंद पन्नों पर
नादान हूँ मैं, अभी कहाँ इतना होश है।
हर गम को हंसकर सहना, है खामोशी इसका गहना
ना ही मन में कोई रोष है।
हुए जितने भी पुरुष महान, सब है इनकी ही संतान
शूरवीरों को पैदा करती, ऐसी इनकी कोख है...!
प्रेमभाव भरी घृणा मुक्त, सद्गुणों की है ये मूरत
जो अपने ही मजे में मदहोश है।