Ajita Singh
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ग्रीष्मकालीन ऋतु में
कोयल की कूक सुनकर
कुछ संवरती, कभी सजती
पसीने की बूँदों से श्रृंगार,
करती हुई औरत
निहारती बारिशों को
फिर मन में बुदबुदाती कभी रोती,
कभी मुस्कुराती आग से भी ज्यादा,
तपती हुई औरत।
वो शाम.....
कांटे
मौन भाषा
सुकून
जैसे
सफ़र
कविता
प्यार
मौन
तुम