खामोशी क्या खूब सजती है। खामोशी क्या खूब सजती है।
निहारती बारिशों को फिर मन में बुदबुदाती कभी रोती, निहारती बारिशों को फिर मन में बुदबुदाती कभी रोती,
हसरतें हैं.. तारों को गिन कर, बालपन में लौट जाने की..! हसरतें हैं.. तारों को गिन कर, बालपन में लौट जाने की..!