औपचारिकता
औपचारिकता
गांधी, व गुदड़ी के लाल कहे जाने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी के क्रमशः १५२वें व ११७ वें जन्म दिवस की कुछ मधुर समृतियों में मेरी से निकले कुछ
शब्द ...
अस्थिरता का दौर है ये...
ऐसे में गांधीवाद क्या? आयेगा।
लालच और बाजार वाद के दौर में
गांधी के आदर्शों को क्या कोई और
लाल बहादुर एक बार फिर दोहरायेगा?
धर्म विहीन राजनीति के मृत्युजाल से
क्या कोई और सहज निकल पायेगा।
विश्व शांति की पुर्नस्थापना कर अब
कौन? निःशुल्क अपनी जान गंवाएगा।
मत सोचो! लाठी, धोती, चश्मे वाला बाबा,
या! फिर! जनता को मुखिया कहने वाला
वह मसीहा फिर लौट पास तुम्हारे आयेगा।
पर सेवा, संचय से पूर्व त्याग, समर्पण
व झूठ को सत्य से, कर्म से समाज को
अपने वश में खुद करना समझना होगा।
शोषण का अहिंसक प्रतिरोधक रूप
अब तुम्हें खुद ही धरना सीखना होगा।
मानवीय मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित कर
गांधीवाद के नव स्वरूप को गढ़ना होगा।
धर्म, प्रथा, आडंबरों की सीमा से परे हो ,
आचरण से गांधी-सम ही बनना होगा।
गर् कर ना सके! ये सब हम-तुम! तो!
महज परम्परा रूप में बापू-लाल का..
स्मरण! मात्र एक औपचारिकता-सा
सामान्य कृत्य निज देश से एक छल होगा.....
निज देश से छल होगा.......
