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Dr Baman Chandra Dixit

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Dr Baman Chandra Dixit

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अरज सुनो

अरज सुनो

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अरज सुनो बरज राज आज 

मोहे लाज लागत है भारी।

मत झांक नैनन फांक बांक मोहे

लाज लागत है भारी।।


मधुर मंद मनमोहक

मुसकान अधर पर सोहे

बिसरा के लाज चित्त चंचल

तोर रंग रंगना चाहे।

मन मिलन को प्यासी मगर मोहे

लाज लागत है भारी।।


बेशर्म सी हँसी होंठों की

निकले अटक अटक के

जाँ निकाल कर जिगर से

ले जावे बड़े छटक से

बार बार मार कटार मत मार 

लाज लागत है भारी।।


निहार तोर रूप राजि

मन मोहित होवत जावे

जागे सिहरन घन घन

चित्त सबर खोवत जावे

धड़के दिल बार बार बेजार मोहे

लाज लागत है भारी।



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