Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

अपनों के संग उत्सव के रंग

अपनों के संग उत्सव के रंग

1 min
274


उस रोज़ दीवाली मनती है....

परदेस गए घर के बच्चे 

जब छुट्टी लेके आते हैं 

वीरान पड़े से आँगन में 

फिर से तूफान मचाते हैं 

शैतानी की फुलझड़ियों में

उस रोज़ दीवाली मनती है।।


सज कर बैठी उस चादर पर

सलवटें भूचाल मचाती हैं

घर के हर कोने कोने में

मुस्काने फिर मुस्काती हैं

खिलते चेहरों की फिरकी में

उस रोज़ दीवाली मनती है।।


जब रातें दिन सी जगती हैं 

जब नींदें भी उठ जाती हैं

यारों की महफ़िल जी उठती

हर शमा गीत सा गाती है 

मस्ती के चकरी चक्कर से

उस रोज़ दीवाली मनती है।।


मैगी की कर ऐसी तैसी

घर के ढाबे जब भाते हैं

नन्हे से बालक फिर बनकर

जब माँ के हाथों से खाते हैं

मीठी मीठी अठखेली में

उस रोज़ दीवाली मनती है।।


जब शादी की तकरारों पर

पापा -बच्चे टकराते हैं 

रूठ मनाकर फिर से वो

ले गलबहियां सो जाते हैं

प्यारी उस मान मुनव्वल में

उस रोज़ दीवाली मनती है।।


बेटी बनकर घर की बहुएं 

आँगन रंगीन बनाती हैं

स्नेह भरे नेह के दीपक

घर भर के मन चमकाती हैं

देवर भाभी की मस्ती में

उस रोज़ दीवाली मनती हैं ।। 


जब जब हो संग अपनों का

हर रोज़ दीवाली मनती है

वो घर ही क्या जिस आँगन में

एक रोज़ दीवाली मनती है

संग साथ की सौगातों में

हर रोज़ दीवाली मनती है।

हर रोज़ दीवाली मनती है।।

      



Rate this content
Log in