अंतरद्वंद
अंतरद्वंद
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आदर्श मेरे बनते गए
उनके लिए प्रतिबंध।
चेहरा जो आत्मा का
दर्पण होता है सदा ।।
उसमें देखी है मैंने साफ
झलक उन चिन्हों की।
कुढ़न भरे उन बंधनों की
बेमेल सोच के टकराव की।।
ना मुझे मेरे आदर्शों की
मौत सुकून देती है अब।
और ना उन्हें मुझ में मेरे
आदर्शों के प्रतिबंध चिन्ह।।
किसे छोड़ूं किसे साथ ले चलूं,
ये तय करना !अभी है मुश्किल
पर ये सच बखूबी जानता हूं
आदर्श बिना "मैं" मैं कहां हूंगा
भीड़ में भी सदा तन्हा ही रहूंगा
