अनकहे एहसास
अनकहे एहसास
एक अनकहा सा एहसास
तुझे गोद में पहली बार उठाना,
थाम कर हाथ तेरा
नन्हे नन्हे कदमों से तुझको चलाना।
रातों को जाग जाग कर
तुझे रोते से सुलाना,
और आज मैं रोऊं कभी
तो तेरा मुझको सहलाना।
भूख लगने पर तुझे
अपने हाथों से निवाला खिलाना,
अच्छा लगता है मुझे
मेरा रूठना और तेरा मनाना।
कर-कर बदमाशी मेरे पास
आकर यूँ छिप जाना,
कैसे ढूंढ़ेगा इस महफूज जगह से
तुझको ज़माना।
मेरी डांट के बाद भी
तेरा मुझसे यूं लिपट जाना,
जैसे मुझमें ही छिपा हो
तेरा सारा खज़ाना।
वो पहली बार तेरा
साइकिल चलाना,
खिलौनों से नित नए-नए
खेल दिखाना।
खिलौने टूट जाने पर
तेरा बिगड़ जाना,
याद है मुझे तेरे बचपन का
हर एक तराना।
स्कूल में पहले दिन
तुझे छोड़कर आना,
तुझसे ज़्यादा मेरे मन का
वो घबराना।
सीख गया है तू
नए-नए दोस्त बनाना,
पर सबसे करीबी दोस्त
मुझको ही बताना।
तेरे दिल का किसी काम में
ना लग पाना,
जब तक ना सुनाए
पूरे दिन का अफसाना।
तेरी जिद्द के आगे कैसे
नतमस्तक हो जाना,
अब समझी कितना मुश्किल है
ये फर्ज निभाना।
तेरी तमाम खुशियों में
अपनी खुशियों को पाना,
माँ होने के अर्थ को मैंने
अब समझा अब जाना।