ऐतबार नाख़ुदा पर !
ऐतबार नाख़ुदा पर !
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वो जो सर-ए-आइना सरमाया-दार है |
पस-ए-आइना मुख़्तलिफ़ किरदार है |
फ़रेबो-मक्र तो ख़ूब यहां बिकते हैं,
कहाँ, कौन है जो सच का ख़रीदार है |
दर्दे-दिल किस लिए सुनाते हो उसे ,
इल्म नहीं, कि वो बहरों का सरदार है |
ख़ामशी- ए- गुल ने घेरा हर तरफ़,
आमदे-तूफां का फिर आसार है |
कश्ती-ए-'गुलाब' डुबो सका न कोई,
नाख़ुदा पर उसको ऐतबार है |