अबोध बाल मन
अबोध बाल मन
अबोध बाल मन ,कुछ कहता ,
कुछ गुनता है ,
जाने ना किसी की और माने ना
किसी के मन की बात ,
बस अपने मन की करता है,
चाहता है किसी पँछी की तरह ,
खुले आकाश में विचरना ,
ऊँच नीच ,भेद भाव ,रंग भेद इन सब से परे,
रचता अपनी नई ही दुनिया ,
उसके साथी हैं सब ,
बहुत भोला है बचपन ,
निश्छल ,निष्कपट , किसी के मन की चाल न समझे ,
बस समझे सिर्फ अपने मन की बात ,
और प्यार की भाषा
शायद यही तो वह बचपन कहलाता है ,
जहाँ सिर्फ प्यार के लिये ही वह सबके पास आता है,
और जिसे प्यार ही बांटना सबको आता है ,
अपनी एक मीठी मुस्कान से वह सबका मन,
चुरा ले जाता है ।