Shakuntla Agarwal

Others

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Shakuntla Agarwal

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आस

आस

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पीछे मुड़कर जब देखती हूँ,

पाती हूँ एक चुप्पी !

वीरानी, शांति, कुण्ठा,

उल्लास और एक आस,


बचपन का लड़कपन,

जवानी का अल्हड़पन,

अपनों के बीच मुस्कुराना !

अपनों का प्यार पाकर,

फूल सा खिल जाना !

ज़िन्दगी का कौन सा रूप

नहीं जिया मैंने ?

कभी ख़ुशी का, तो कभी

ग़म का घूंट पिया मैंने !


ज़िन्दगी के कोरे पन्नों पर,

अपनों के नाम लिखती चली गयी

समय का बदलाव तो देखो,

सब नाम - अक्षर धूमिल हो गए !

जो बने हमसफ़र - हम साया,

वही दुनिया में न जाने कहाँ

गुम हो गए ?

मेरा प्यार, ममता और

अपनापन तो वही है,

वो छलावे की तरह छल कर,

दुनियादारी में न जाने कहाँ

गुम हो गए ?

ढूँढती रही नज़रें उनका

दीदार पाने को,

हसरत लिए उनके आने की,

हर आहट पे ग़मगीन हो गए !


सोचकर हैरान हूँ परेशान हूँ,

क्या यही दस्तूर है दुनिया का ?

यही दुनिया है तो फ़िर,

क्यों ? आस करते हैं हम,

अपनों से अपनेपन की !

पल - पल जीते हैं,

पल - पल मरते हैं हम,

एक आस के साथ !

अपनेपन का साया,

कभी हमें अपने पास बुलाएगा !

हमारी अँधेरी दुनिया में भी,

रौशनी का दीया जगमगाएगा !

स्वार्थी दुनिया में स्वार्थों का साथ है,

क्यों ? दफ़न कर देते हैं हम,

शकुन रिश्तों को ?

माया और स्वार्थ के बाज़ार में          


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