Surendra kumar singh

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आंखों की नमी

आंखों की नमी

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वो चुप चाप टकटकी लगाये

मेरी आँखों की नमी को

निहार रहा था

खामोश निश्चल

ध्यानवत

बिल्कुल एकाग्र।


उसकी इस अवस्था में

उसे छेड़ने का मन

तो नहीं कर रहा था

वैसे भी बलात किसी से

छेड़छाड़ मेरा स्वभाव नहीं है

तो मैं भी उसकी 

तरफ उसी तरह देखने लगा

और पाया मैंने उसके अंदर

खुद में आत्मविश्वास

एक उम्मीद मुझसे

कि मैं उससे मांगूंगा

थोड़ी सी रौशनी

थोड़ा सा साहस


मैं भी खामोश था

उसकी तरह

और वो टकटकी लगाये

मेरी खुश्क आंखों में

नमी तलाश रहा था।


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