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संजय असवाल

Others

4.7  

संजय असवाल

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आखिरी वक्त

आखिरी वक्त

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जब सांस आखिरी हो 

और यकीं हो चला हो 

दुनिया से विदा लेने का,

तब याद आते हैं मां बाप 

उनकी गोद में 

बिताया हुआ

एक एक पल,

उनका लाड़ प्यार 

अपनी शैतानी में वो डांट डपट,

वो उनके बांहों का हार 

जिसमें बीता 

मेरा सुनहरा कल।


वो मां के हाथों का 

लजीज व्यंजन 

पिताजी का पढ़ाया जीवन का पाठ,

याद आते है वो भाई बहन 

जिनसे लड़े बिना 

चैन नहीं आता था 

जिनके बिना रहा भी नहीं जाता था,

उनके साथ खेला गया 

गुड्डे गुड़िया का खेल

वो झूठ मूठ का खाना बनाना 

फिर संग बैठ मिलकर खाना,

याद आते हैं

वो जिंदगी के खुशनुमा कल

मेलों त्योहारों में गुजारे पल

याद आता है 

सच वो प्यारा बचपन।


कैसे गुजर गया ये बचपन 

और गुजर गई जवानी 

जिम्मेदारियों को ढोते ढोते

आज इस मृत्यु शैय्या पर 

सब याद आता है,

याद आते हैं सारे रिश्ते नाते 

वो दोस्त मेरे पुराने,

जिनसे बात हुए 

अरसा बीत गया है।

याद आती है 

हर छोटी बड़ी बातें 

जिससे दिल दुखा था 

अपनों का,

खुद का अहंकार

वो घमंड वो रौब,

जब जाने अनजाने 

अपने बेगाने हो चले थे

खुद से दूर हो चले थे,

तब जीवन यथार्थ 

वो कटु सत्य याद ना था 

कि जो आया है 

उसे एक दिन जाना है 

सिर्फ खाली हाथ। 


पर फिर भी हम 

इस भौतिकता के नशे में

भोंडा प्रदर्शन करते रहे

सत्य से परे चलते रहे,

अच्छाई का दामन छोड़ 

स्वार्थ घमंड में जीते रहे,

आखिरी सांस जब 

हलक में अटकी हो 

तब सत्य का ज्ञान हो जाता है,

अच्छे बुरे कर्मों का 

हिसाब हो जाता है।

तब याद आते हैं 

बचपन के बहुरंगी दिन 

अपना प्यारा घर 

उसमें बिताया हुआ एक एक दिन, 

पुरानी यादें यादों में झूले 

जिस पर खूब झूले थे, 

वो पेड़ उनकी शाखाएं 

जिन पर चढ़ 

खूब उछल कूद किया करते थे,

वो कच्ची अमिया तोड़ खा लेना 

भौंरों को पकड़ना 

माचिस की डिबिया में रख 

उनकी गुन गुन सुनना,

पतंग उड़ाना

कटने पर दौड़ लगाना,

लुका छिपी, पिट्ठू खेलना 

अब सब बरबस 

आंखों में चला आता है,

दुनिया से विदा लेने से पहले 

इन्हें फिर दोहराना चाहता है।

ये दिल चाहता है 

सभी को दिल से लगाना,

गलतियों पे सर झुका 

माफ़ी की उम्मीद करना

आंखों में उन्हें बसा 

बस विदा होना,

जब सांसे रुकने लगे 

एहसास अब होने लगे 

कि वक्त अब खत्म हुआ 

इस खुशनुमा जिंदगी का,

तब उस परमात्मा से बस 

इतनी सी ख्वाहिश

मांगता हूं,

अगर हो सके 

थोड़ा उधार और वक्त मांगता हूं,

ताकि विदा लेने से पहले 

देख सकूं सभी को अपने दर पर 

भीगा सकूं अपनी आंखों को नम कर।

चैन से तब विदा हो सकूंगा

जो कर्ज इस दिल में 

भार बन 

रखा था बरसों से,

उन्हें देख कर 

आंसुओं से चुका पाऊंगा,

लूंगा एक अनंत विदाई 

अपनों से फिर 

फिर हमेशा हमेशा के लिए,

इस मृत्यु लोक से 

उस परलोक तक.......।



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