आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ मैं दूसरों को अपने जैसा समझ लेती हूँ ?
क्यूँ मैं सबको इतना प्यार कर बैठती हूँ ?
क्यूँ मैं लोगों की गलतियों को नज़रअंदाज़ करती जाती हूँ ?
क्यूँ सबका भला करने के बाद भी गलत इल्जाम लगाते है मुझ पे?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ कोई सिंगल गोल नहीं बना सकता है?
क्यूँ मैं सबकी गलतियों को नज़रअंदाज़ कर अच्छाइयाँ देखती हूँ ?
क्या मैं सबका दिल तोड़ती हूँ या सब मेरा दिल तोड़ते है?
क्यूँ मैं सबको इतना अच्छा समझ बैठती हूँ ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ लोगों को ऐसा लगता है की सिंगल रहना मतलब बोरिंग लाइफ?
क्यूँ कोई नहीं समझता है की मैं अपनी ज़िन्दगी में खुश हूँ ?
हाँ, सुख दुख तो चलते रहते है, पर ठीक हूँ मैं, क्यूँ कोई नहीं समझता?
क्यूँ लोगो के दिल पे इतना नफ़रत है ? क्यूँ कोई प्यार से नहीं रह सकता?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ इतना अच्छा होना भी बुरा है?
क्यूँ इतना सकरात्मक सोच फैलाने की कोशिश में
दूसरों से नकरात्मक सोच भी आ जाती है?
क्यूँ सीधे लोग और सीधे पेड़ को काट दिया जाता है?
क्यूँ कोई एक अलग तरीके से ज़िन्दगी नहीं जी सकता?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ मैं सबको अपने जैसा समझ बैठती हूँ ?
क्यूँ मैं भूल जाती हूँ यहाँ लोग दिखते कुछ और है दिखाते कुछ ओर?
क्यूँ मैं दूसरों को समझ नहीं पाती हूँ या दूसरे समझ नहीं पाते है?
जो भी कर रही हूँ , वो भी मैं क्यूँ कर रही हूँ ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ?
आखिर क्यूँ हम मिल जुल कर शांति से नहीं रह सकते?
क्यूँ हर जगह गुस्सा, इर्ष्या और नफ़रत भरा पड़ा हुआ है?
क्यूँ मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ ?
क्यूँ मैं इस कविता को लिख रही हूँ ?
आखिर क्यूँ?
