मैं अल्पना रंग बिखेरती आंगन की शोभा सी ,मेरे साधारण शब्दकोष में नये शब्दों को जोड़ने की जुगत में एक गृहणी जो बहुत बडी़ दुनियां में अपना अस्तित्व तलाशती रहती है
हर रोज नयी इबारतें लिखती हूँ अपने लिये। हर रोज नयी इबारतें लिखती हूँ अपने लिये।
कभी कभी मगर समय आने पर पत्थर भी बन जाती हूँ। कभी कभी मगर समय आने पर पत्थर भी बन जाती हूँ।
बस जी ले जिन्दगी को बना नये कुछ रास्ते जिन्दगी कहीं यूं ही न बीत जाये बस जी ले जिन्दगी को बना नये कुछ रास्ते जिन्दगी कहीं यूं ही न बीत जाये
बस इतने में ही बिगड़ जाती है वो औरत अपनों की नज़रों में। बस इतने में ही बिगड़ जाती है वो औरत अपनों की नज़रों में।
अक्सर कुछ बारिशें बरसती नहीं डूबो जाती है भीगे मन को पानी से नहीं कुछ भावों से हावी होने ... अक्सर कुछ बारिशें बरसती नहीं डूबो जाती है भीगे मन को पानी से नहीं कुछ भाव...
हाँ मैं, जशोदा देवकी बन हर जन्माष्टमी अपने बच्चों में कृष्ण को संजोती हूँ। हाँ मैं, जशोदा देवकी ... हाँ मैं, जशोदा देवकी बन हर जन्माष्टमी अपने बच्चों में कृष्ण को संजोती हूँ। ह...
उठो देश की बेटियां स्वयंसिद्धा बनो किसी कृष्ण के आने की उम्मीद की जगह खुद को हर रण के लिए तैयार रहो।... उठो देश की बेटियां स्वयंसिद्धा बनो किसी कृष्ण के आने की उम्मीद की जगह खुद को हर ...
अभी साल भर ही तो बीता है विछोह को अपने अरमानों को सफेदी में लपेट जी भर के रोती है मेरी साठ साल की ... अभी साल भर ही तो बीता है विछोह को अपने अरमानों को सफेदी में लपेट जी भर के रोती ...
ताकि महसूस कर पाऊँ जिन्दगी में फिर से ताजी सी एक टुकडा़ धूप।। ताकि महसूस कर पाऊँ जिन्दगी में फिर से ताजी सी एक टुकडा़ धूप।।
नारी चरित्र के रक्षार्थ आज भी मुझे लंकेश की बन्धक रहना उचित लगता है। मुझे भी सीता बना दो निर... नारी चरित्र के रक्षार्थ आज भी मुझे लंकेश की बन्धक रहना उचित लगता है। मुझे ...