मेरी मुहब्बत बंट गयी...
मेरी मुहब्बत बंट गयी...
एक मुहब्बत थी मेरी, जो दो हिस्सों में बंट गयी,
एक तरफ तेरी बेवफाई, दूजी मेरी तन्हाई रह गयी
मैं तेरी रूसवाई को भी वफा थी समझी,
नादान थी तुझे मैं कहाँ समझी
एक शोर था या सन्नाटा था तेरे बाद भी,
मैं हवा से बेवजह टकराती फिरी
मैं तेरी मुहब्बत को पाने की ख्वाहिश में,
अपने आप से भी अंजान रहीं
बड़ी कोशिशें की तेरी यादों को भी मिटा के तुझे भूल जाने की,
ना जाने फिर भी मैं कहाँ हारती गयी
एक मुहब्बत थी मेरी जो दो हिस्सों में बट गयी,
एक तरफ तेरी बेवफाई दूजी मेरी तन्हाई रह गयी
ना जाने मुझमें तेरे लौट आने का इंतजार बाकी हैं
या आ जाए तो भी ना अपनाने की जिद्द
ना जाने वो कौन-सी मजबूरी रही थी
बस तेरे मन बहलाने का सामान थी मैं
अब यकीन नहीं होता है किसी के भी मुस्कुराते चेहरे का
हर एक शक्स के चेहरे पर तेरा फरेब है दिखता
ना जाने कब इस कशमकश से भी
किसी को मुझे बाहर लाने की भी इजाजत मैं दूँगी
तन्हा थी अब तन्हा ही रह गयी मेरी ये परछाई
किस से कहूं मैं हार ए दिल अपना ए हरजाई
एक मुहब्बत थी मेरी जो दो हिस्सों में बंट गयी
एक तरफ तेरी बेवफाई दूजी मेरी तन्हाई रह गयी