क्यों छुपाते हैं लोग - एक ग़ज़ल
क्यों छुपाते हैं लोग - एक ग़ज़ल
दूर रहकर क्यों ऐसे मुस्कुराते हैं लोग,
दर्द गर दिल में है तो क्यों छुपाते हैं लोग।
दर्द की गर कोई ज़ुबान नहीं है अपनी,
फिर क्यों आँखों से अश्क़ बहाते हैं लोग।
न कहना यह ख़ुशी के आँसू हैं उनके,
कुछ तो मजबूरी होगी इसलिए ऐसा जताते हैं लोग।
दुनिया बेफिक्र है दर्द व रिश्तों की किसको है परवाह,
गम का कोई अक्स नहीं, क्यों ऐसा बताते हैं लोग।
और भी कई मौजूद हैं उन जैसे इस दुनिया में,
ऐसे तसव्वुर से क्यों दिल को बहलाते हैं लोग।
हर शख्स है अलग, ऊपर वाले की है कारस्तानी;
हर शख्सियत है अलग क्यों नहीं पहचानते हैं लोग।
उठा के हिम्मत की शमशीर पार करते हैं जो मंज़िलें,
इस दुनिया-ए-आलम में वे निराले कहलाते हैं लोग...