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परिवार

परिवार

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कितने प्रकार के यहां है परिवार,

कहीं एकल तो कहीं संयुक्त है परिवार।

कहीं कोई रहता अकेला,

तो कहीं कोई सबको साथ लेकर चलता।।

किसी के लिए है जी का जंजाल,

तो कोई समझता स्वर्ग से सुंदर अपना परिवार।।


कहीं कोई भोजन एक साथ खाते,

तो कोई एक ही घर में मिल नहीं पाते।।


कहीं पर है मत भेद,

तो कहीं है मन भेद।

कहीं कहीं तो इतनी रंजिश,

कि हो जाए संबंध-विच्छेद।।


कहीं पर है एक रसोई,

तो कहीं पर है अलग रसोई।

कहीं कहीं तो इतनी रंजिश,

कि रसोई के अंदर एक और रसोई।।


कहीं मेल-मिलाप है,

ख़ूब वार्तालाप है।

कहीं कहीं तो इतनी रंजिश

कि देखना-दिखना भी पाप है।।


कहीं प्यार-दुलार है,

ख़ूब मान-सम्मान है।

कहीं कहीं तो इतनी रंजिश,

कि ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार है।।


कहीं होली-दीवाली है,

सारे ही त्योहार है।

कहीं कहीं तो इतनी रंजिश

कि अपना-अपना परिवार है।।


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