ये वो ठौर नहीं
ये वो ठौर नहीं
सोचा था जो मैंने, ये ठौर वो नहीं
मंजिल है कहीं और, उसूल मेरे कम नहीं
मिले हैं पंख तो आसमां मे उडूं
सोचा है जो, क्यों न मेरे मन की करूँ
रंग गुलाबी है मेरे सपनों का
इन सपनों से मै, मेरा आसमां भरुं
सोचा था जो मैंने, ये ठौर वो नहीं
मंजिल है कहीं और, उसूल मेरे कम नहीं
परवाह नहीं, कुछ भी क्यूँ मैं सोचूं
बना रहे आगाज़, जो हुआ था शुरू
हौसला है बुलंदियों को छूने का
हसरतों को कैद, मुठ्ठी मे क्यूँ करूँ
सोचा था जो मैंने, ये ठौर वो नहीं
मंजिल है कहीं और, उसूल मेरे कम नही
छूटा है जो पीछे, छोड़ आगे चलूँ
रास्ते हैं नये-नये, खुद रोड़े बिन लूँ
शिकायत नहीं, किसी की शिकायत का
कैसा भी हो रास्ता, बिन रुके आगे बढ़ लूँ
सोचा था जो मैंने, ये ठौर वो नहीं
मंजिल है कहीं और, उसूल मेरे कम नहीं
रात है घनी खुद सितारों से रोशन करूँ
तम है बाकी तो, मातम क्यूँ करूँ
इंतज़ार है बस, लालिमा से भरे भोर का
सूरज उगता है जहाँ, रुख़ उधर कर लूँ
सोचा था जो मैंने, ये ठौर वो नहीं
मंजिल है कहीं और, उसूल मेरे कम नही
सोचा था जो मैंने, ये ठौर वो नहीं
मंजिल है कहीं और, उसूल मेरे कम नहीं॥