मेरी कलम
मेरी कलम
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मेरे शब्द मेरी आवाज़
मैं कहता नहीं ,वो लिखती है
मेरे भाव मेरी भंगिमा
मुझमें ठहराव कर वो बहती है
किस विषय में,किस पंक्ति में
शब्द पिरोती और तुक गढ़ती है
जाने किस ओर जाना है उसे
कल्पनाओं को खुद पढ़ती है
सुख में उतावलापन लिए
दु:ख में पीड़ा को कहती है
वो एक निर्जीव सी वस्तु नहीं
वो हृदय मन में ही रहती है
वो साथी है मेरे अभिव्यक्ति की
वो मौन होकर भी सब कहती है
मुझमें ताकत नही झंझोड़ने की
वो है कि तूफान पैदा कर सकती है