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Usha Gupta

Others

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Usha Gupta

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जी लूँ बचपन फिर एक बार

जी लूँ बचपन फिर एक बार

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जीवन की आपाधापी में कहीं 

खो सा गया था बचपन,

अब निपट चुकीं हैं जिम्मेदारियाँ सभी,

हो गया है ख़ाली-ख़ाली सा जीवन,

क़दम हो गये हैं कुछ धीमे -धीमे,

पहुँच नहीं पाते जहाँ क़दम,

पहुंच जाता है दौड़ मस्तिष्क वहाँ,

दौड़ता है आगे पीछे अब भी तेज़,

पीछे की ओर दौड़ पहुँच गया,

 मस्तिष्क आज बचपन की गलियों में।

थीं यह गलियाँ चिन्ता मुक्त,

बिछे थे पुष्प प्रेम के इन गलियों में,

गूँज थी बिन्दास ठहाकों की यहाँ,

बरस रहीं थीं फुहारें शरारतों कीं,

दूर थीं बहुत लिंग भेद से ये गलियाँ।


खेल रही थी कंचे दोपहरी में दोस्तों के संग,

आवाज़ आई नाराज़ सी माँ की,

छोड़ खेल झट जा बैठी गोदी में माँ की,

लगाया गले माँ ने, उड़ गया क्रोध

माँ का कहीं हवा के झोंकों में,

पकड़ाया गिलास दूध का माँ ने,

भागी चुपके से पालतू लूसी के पास,

देख रही थी ललचाई सी नज़रों से वो गिलास,

हिला रही थी पूँछ,

देख इधर-उधर डाल दिया दूध आधा,

बर्तन में लूसी के।

पानी बाढ़ का पहुँच गया दरवाज़े तक,

बना नाव काग़ज़ की छोड़ पानी में,

लग जाती शर्त इस बात की,

कि होगी गति तीव्रतम किसकी नाव की।

ऊधम मचाते-मचाते खेलते गिट्टी फोड़ कभी,

तो खेलते कभी बैडमिण्टन संग दोस्तों के,

न होता कोई भेद दोस्ती में

 लड़के और लड़की के मध्य।

लड़ते झगड़ते भाई बहन संग,

खेल लेते कभी लूडो तो कभी कैरम,

लगाते ठहाके बिन संकोच।

समझे बिन बोझ करते पढ़ाई भी 

मस्ती के संग।


सुन आवाज़ ठहाकों की अपने, 

सहम गई मारे संकोच के,

हो चुकी थी तरोताज़ा,

घूम गलियों में बचपन की

जी जो आई थी बचपन फिर एक बार।।



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