गज़ल
गज़ल
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मौत आईं तभी भी सो न सकें
ज़िन्दगी का भी बोझ ढो न सकें
मेरी किस्मत में क्यों लगा ताला
देख बेचारगी भी रो न सकें
कैसे कहते हैं खो गये है हम
अपने हिस्से के ग़म तो खो न सकें
लड़ रहे हैं सभी यहां देखो
फूल कोई अमन के बो न सकें
अपनी मिट्टी जहां है अपना ही
प्रीत की डोर भी पिरो न सकें
क्यों बनाई थी रब ने दुनिया ये
के फरिश्ते भी दाग़ धो न सकें
साथ रहते कँवल सभी अपने
पर कभी दिल के पास हो न सकें