इल्ज़ाम ।
इल्ज़ाम ।
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कभी तोहमतें किरदार पर थीं
तो कभी शिकवे आम थे हमसे
कभी रुसवाईयां सरे बज़्म थी हमसे
तो कभी बेफाइयां हमसे
कभी ऐबों से दिए कितने ही दाग़ दामन को
तो कभी इस क़दर थे गिले हमसे
कभी रोने पर भी पाबंदियां थी
तो कभी मुस्कुराने पर भी थे एतराज़ हमसे
कभी फ़िज़ूल में ख़फ़ा थी ये ज़ात-ए-इन्सानियत
तो कभी यूँ ही रूठ गई बे मतलब हमसे
कभी अपना कहकर गले से लगाया हमें
तो कभी बे हयाई से रुख मोड़ लिया हमसे ।