"ज़रूरत"
"ज़रूरत"
पिछले वर्ष की ही बात है,सिमरन के बेटे समीर ने कहा,"मम्मी देखिये,पड़ोसी के आम के पेड़ की डालियाँ हमारी छत पर झुकी हुई है।आम पूरी तरह बौराया हुआ है,खूब कैरियाँ लगेंगी इस बार।" कुछ सप्ताह पश्चात उस आम के पेड़ की सभी डालियाँ हरे-हरे आमों से लद गई,यहां तक क़ि पत्ते कम नज़र आने लगे।पूरे मौसम सिमरन के परिवर के सदस्यों ने छत पर झुकी डालियों पर लगे आमों से तरह-तरह के व्यंजनों का स्वाद लिया।कभी चटनी,अचार,गुड़ाम्बा,मुरब्बा,पन्ना और जाने क्या-क्या?और अंत में शाख़ पर पके मीठे रसीले आम,जो आजके ,ज़माने में शहर में ही नहीं अपितु गाँव में भी दुर्लभ हो गए है।
किन्तु इस वर्ष जब वह पेड़ बौराय ही नहीं,तब कैरियाँ और आम लगने का कोई प्रश्न ही नहीं।अपितु उस छत पर झुकी डालियों के सूखे पत्ते झड़ने से आए दिन छत पर कचरा होने लगा।जिसे मेहरी से साफ़ कराते-कराते सिमरन खिन्न हो जाती।अंत में किसी की सलाह लिए बिना एक दिन माली से कह उसने छत पर झुकी डालियों को निर्दयता से कटवा दिया,और यह सोच चैन की सांस ली कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।