Sarita Kumar

Others

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Sarita Kumar

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वो सतरंगी पल

वो सतरंगी पल

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सदियों के फासले रहे हैं और मीलों की दूरियां मगर फिर भी , जब कभी बंद करती हूं अपनी आंखें नज़र आतें हैं वही जिन्हें खो दिया है अपनी ही नादानी से या फिर जवाब देने की जल्दीबाज़ी से ..... गवां दिया था बरसों पहले । न जाने क्यों सदियों बाद भी बसी हुई है आंखों में वही सूरत भोली भाली , प्यारी सी मुस्कान गुलाबी होंठों पर सजी हुई । काले घुंघराले से बाल , तीखी सी नाक , माथे पर झिलमिलाते पसीने के बूंद .....। कभी किसी बात पर बहस और कभी गुस्से से तमतमाया चेहरा और कभी बेबाक हंसी और हंसते हुए उनका उछलता हुआ पेट । सबसे ज्यादा आकर्षित करता था मुझे हिलता हुआ पेट ... मगर ऐसा बहुत कम ही होता था क्योंकि उनका स्वभाव अंतर्मुखी था , व्यक्तित्व गंभीर और आचरण बेहद संतुलित । धीर गंभीर लेकिन खुशमिजाज स्वभाव बिल्कुल उस अदृश्य आकृति के हूबहू जिसकी परिकल्पना की थी मैंने । बहुत छोटी सी उम्र में ही भरने लगी थी सपनों की ऊंची उड़ान । ढूंढ़ लिया था एक राजकुमार जो करने लगा था मेरी हर समस्याओं का समाधान और धीरे-धीरे आने लगा था बेहद करीब .... इतना करीब की भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की ज़रूरत खत्म हो गई थी । समझने लगे थे हम एक-दूसरे की बातें बिना बोले । महसूस करने लगे थे एक दूसरे की जरूरत अपनी जिंदगी में और इसीलिए पहल किया था उन्होंने । बड़े ही सरल स्पष्ट शब्दों में लिखा था ....प्रणय निवेदन की पंक्तियां मुझे बेहद आनंदित की थी मन का मयूर नृत्य करने लगा था और सातवें आसमान पर पहुंच कर इतराने लगी थी .... । सपनों का वो शीश महल हज़ारों लाखों दीपकों से आलोकित हो गया था । शहनाईयों की गूंज से गुंजायमान हो गया था मेरा पूरा का पूरा जहान । इससे बड़ी खुशखबरी और क्या हो सकती थी कि जो मेरी कल्पनाओं में जो था वो सेहरा बांध कर मेरे द्वार आने वाला था ....! 

मगर तभी एक विचार आया कि क्या कहेंगे "लोग" समाज के वो लोग ? और यही विचार मेरे शीश महल को एक पल में धराशाई कर दिया चकनाचूर हो गया और मैंने अपनी इच्छाओं , चाहतों और ख्वाहिशों के खिलाफ बेहद कठोर फैसला लिया । राहें बदल गई हमारी और दो विपरीत दिशाओं में तय किया हमने अपना-अपना सफर । दिन ,महीने ,साल और दशक दर दशक बीत गए । हमने नहीं ली एक दूसरे की खोज-खबर और ना ही कभी कोशिश की ढूंढने की । जरूरत भी नहीं समझा हाल पूछने का क्योंकि हमारी सांसें जो चल रही थी इसलिए यकीन था डोर के उस छोर पर भी स्पंदन जारी होगा । एक भरोसे के साथ हम एक-दूसरे की जिंदगी में दखल दिए बिना जिंदगी गुजार रहें थे । जब कभी मेरी जिंदगी में कोई परेशानी आती तो खोल कर पढ़ लेती वो खत और दिवाली की शुभकामनाएं जिसमें लिखा था :- "दिवाली की ढेरों शुभकामनाएं जिसे कभी दिल से चाहा था और आज भी प्यार करता हूं ।" यही "आज भी ...!" कभी बीता हुआ कल नहीं बन सका और अब तलक यथावत बना रहा "आज भी ...!" इसीलिए अंतस मन में विराजमान रहा वो भोली भाली मासूम सूरत , प्यारी मुस्कान और बेबाक हंसी के ठहाके गूंजते रहे मेरे कानों में .... । शहर दर शहर बदलती रही बरस दर बरस वक्त गुजरता रहा बीस बरस से साठ बरस की हो चली मगर आंखों में बसी रही वही सूरत , कानों में गूंजता रहा वही पुकार और मेरे भीतर धड़कता रहा वही दिल जो शत प्रतिशत मेरा था , मेरे लिए समर्पित था और मैं भी बसती थी उनके यादों में मगर "वो समाज के लोग " इस कदर विलेन बनकर मुझे भयभीत कर दिया था कि मैंने अपने हाथों से अपनी दुनिया जला डाली और अस्थी कलश लेकर उम्र भर फिरती रही मन मंदिर में बसाए हुए वो "भोली सूरत " प्रेम की वो पहली अनुभूति , मेरे जीवन का वो पहला आकर्षण जो बन गया आखिरी । फिर कभी नहीं हो सका वो एहसास जिसे पहली बार महसूस किया था ..... । जीवन तो पल पल चलता ही रहा बढ़ती रही मैं अपने जीवन के सफ़र में । मिला मुझे एक हमसफ़र और साथ में उसके मैंने सारे रस्म निभाएं । अपना धार्मिक , सामाजिक और नैतिक कर्तव्यों के पालन में जरा भी कोताही नहीं की । पूरी निष्ठा , ईमानदारी और समर्पण के साथ बंधी रही लग्न मंडप के वेदी से , मंत्रोच्चारण से , मर्यादाओं से और मंगलसूत्र से मगर जीवन के आखिरी काल में बहुत शिद्दत से याद आया वही मनोहरी भोली भाली सूरत , वही शब्द गूंजने लगे जब मेरे रूखे जवाब से नाराज़ होकर लिखा था उन्होंने किशोर कुमार के गाए एक गीत की कुछ पंक्तियां :- "छोटी सी ये दुनिया पहचाने रास्ते कहीं तो मिलोगे कभी तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल ....... आगे की पंक्तियां चुभ गई थी मुझे सोचेंगे हम, प्यार में हमने एक पत्थर को पूजा लेकिन याद ये रखना नहीं मिलेगा मेरे जैसा दूजा ...।" साठ साल में मैंने ये जाना कि कितना सच बोला था ..! नहीं मिला मुझे उनके जैसा कोई दूजा । 

ईश्वर की ही मर्जी रही होगी शायद जो अब हम मिलें हैं गुजार कर पुरी जवानी । बाल मेरे चांदी के तारो से सजे हैं दांत लापता है । गालों में जो गढ्ढे पड़े हैं बोली हो गई पोपली । घुटनों में है दर्द दोनों के मुंह का स्वाद फीका हो चला है । बच के रही हैं बस एक बात दोनों के आंखों में थोड़ी सी प्यास ... । आस , एहसास और जरा सी बात कैसे हो आप ? पूछा था जब उन्होंने साढ़े तीन दशक बाद हर्षित मन से पुलकित स्वर में पूछा था "कैसी हो तुम ? " मैंने कहा ठीक हूं मैं , आप कैसे हैं ? उन्होंने कहा "तुम बिल्कुल पहचान में नहीं आई कितना बदल गई हो ?" तब मैंने कहा "मगर आप तो बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे सदियों पहले थे .... ।" तब मेरी मूर्खतापूर्ण संवाद पर हंसे थे और पूछा था "याद है तुम्हें हमने साथ-साथ मिलकर सिक्कों का एक महल बनाया था ?" हां "अरे वाह आपको याद है और क्या क्या याद है आपको ? " "याद तो बहुत कुछ है तुम्हें क्या जानना है वो पूछो ? " बड़ी लम्बी सांस ली थी मैंने फिर कहा था नहीं कुछ नहीं पूछना है अब , जब आप मिल गए हैं तो सारा जग मिल गया है दुनिया भर की खुशी मिल गई है सारा जहां मेरा हो गया है । अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए । सिवाय सुकून की नींद आपके आगोश में और मुक्ति इस जहां से ..... । मुझे तलाश नहीं इंतजार था आपका । पूरा यकीन था मुझे विदा करने आप जरूर आएंगे और इसीलिए मैं अब तलक जिंदा हूं .... आपके सामने विदा होने के लिए आपसे जुदा होने के लिए । वह शुभ घड़ी आ गई है आप सदियों बाद इसीलिए तो आएं हैं मेरी जिंदगी में वरना सवा तीन दशक मतलब साढ़े बत्तीस साल बाद यूं अचानक किसी अजनबी राहों में अनायास मुलाकात की क्या वजह हो सकती है ? "शायद तुम ठीक कह रही हो , मैं भी रात भर यही सोचता रहा कि उम्र के इस पड़ाव पर आकर हम क्यों मिलें हैं ? " कभी कभी तुम्हारी बहुत याद आती थी एक दो दफा तुम्हारे शहर आया था मगर तुम तक पहुंचने का कोई सुराग नहीं मिला और मैं बिना मिले लौट गया तब मुझे लगने लगा था कि हम फिर कभी नहीं मिल पाएगा । मैं सिर्फ एक बार तुम्हें देखना चाहता था तुम्हारा हाल खबर जानना चाहता था बस । "आज जब मिली हो तो इन हालातों में कि मिलने की खुशी से अधिक तुम्हारे हाल पर दुःख हो रहा है । ईश्वर ने हमें मिलाया भी तो किस अवस्था में ..?"

मीलों के फासले तो आज भी कायम है हमारे दरम्यान क्योंकि देखा नहीं है रूबरू होकर साढ़े बत्तीस सालों से मगर मुलाकात हुई है , ढेरों बातें भी हुई हैं सपनों में और शायद इसीलिए हम सदियों पीछे लौटकर अपने युवावस्था में मिलते हैं और बिंदास बातें होती हैं वो सारे किस्से , अनकही बातें जो अधुरे रह गए थें वो पूरे हुए । मिलकर सपनों में तृप्त हुई , संतुष्ट हुई परिपूर्ण हुई । बाकी न रहा कोई अरमान , कोई इच्छा , कोई चाहत या कोई ख्वाहिश । अब जो मेरी मौत हुई तो आत्मा भटकेगी नहीं मुझे मुक्ति मिल जाएगी क्योंकि मुझे मिल गया मेरा रहनुमा जो रूह में मौजूद था , मन मंदिर में बसा हुआ था मेरे अचेतन मन में रहकर हुकूमत कर रहा था सदियों से और बेखबर मैं न जाने क्या क्या सोचती रही .... । 

बेहद सुखद पल , खुशनुमा मौसम और "हम " मैं और आप । कितने सुहाने दिन थे । घंटों पहले से उनका इंतजार और उनके आने पर अस्त व्यस्त अपना हाल झूकी नजरें ... धड़कता दिल गले में अटकती आवाज़ पास बैठने की चाह और दूर बैठने की मजबूरी ... घर का कठोर अनुशासन मर्यादा की पाठ और बेलगाम ख्वाहिशें ..... ओफ्फो ये कैसी मजबूरी .... मगर फिर भी कुछ बेहद हसीन पल दूर होकर भी पास होने का एहसास ... । सुहाना मौसम छत की मुंडेर पर बैठना हवाओं का एक झोंका दुपट्टे का उड़कर उन्हें छू जाना और झट से खींच कर दुपट्टे का कोर अंगुलियों में लपेट कर बांध लेना उस छुअन को जो महज दुपट्टे को छुआ था .... । अब तक सहेज रखा है बांध कर उस कोर को । वो फेविक्विक का ट्यूब लाल और पीले रंग का जिस पर लिखा होता था जोड़ सकता है सब कुछ सिवाय टुटे हुए दिल का । शायद इसीलिए जुदा होकर भी टुटने नहीं दिया दिल को बहुत संभाल कर रखा था अपना दिल । याद है वो तमाम बातें , शरारतें और शैतानियां साथ में उनकी सहज सरल मुस्कान जो सदियों बाद आज भी यथावत है ।



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