वह मुस्कुराया था ..
वह मुस्कुराया था ..
मुझे बेहद कोफ़्त होती थी। पिछले दिनों से उसकी की जा रही, अधिकाँश पोस्ट पढ़ते हुए मुझे अचरज होता था कि आखिर क्यों? मैं उसे पढ़ रही हूँ, ब्लॉक क्यों नहीं कर देती उसे। वह अपनी कौमी कुँठाओं को, बड़ी निपुणता से, अपनी अच्छाई जैसे रूप में अपनी रचनाओं में लिख, पोस्ट करता था। जिसे और कोई पहचाने या नहीं, मैं भली प्रकार समझ रही थी।
वह मेरे कौम के प्रति, मेरे मज़हब के प्रति अत्यंत चतुराई से अपने दुराग्रह लिख दिया करता था। जिन्हें पढ़ कर मेरा खून खौल उठता था। तब मुझे लगता कि ऐसे ही वह लिखता रहा और मैं उसे पढ़ते रही तो कहीं, मुझे उच्च रक्तचाप की शिकायत न हो जाए।
मैंने एक पोस्ट पर आपत्ति लिखी कि आप अपने पूर्वाग्रहों में लिख रहे हो। उसने जवाब दिया था- आप अपने पूर्वाग्रहों में पढ़ रही हैं। मैंने लिखा, मैं ग्रुप एडमिन को रिपोर्ट करती हूँ, उसने लिखा- आपको आपत्ति है तो, मैं स्वयं डिलीट कर देता हूँ।
फिर पोस्ट डिलीट हो गई। बड़े विचित्र तरह का था वह। भारत सरकार, मुझे एक खून माफ़ करती तो, मैं उस खूसट बुड्ढे के 'रुग्ण भेजे, को पिस्टल से, उड़ा आती।
फिर आया कोरोना संक्रमण, कोरोना के बारे में चेतना जागृत करने (आह्वान) के नाम पर, वह, फिर चालाकी भरी पोस्ट करने लगा।
मुझे अनुभव हुआ कि वह यूँ यह बाज नहीं आएगा।
मैंने सोचा, इससे ब्लॉक के जरिये ही बचना श्रेयस्कर रहेगा। अन्यथा सच में, मैं बीपी की मरीज हो जाऊँगी।
उस रात, मैंने ब्लॉक कर दिया था।
दो दिन ही हुए थे, मैंने सोचा मालूम नहीं, क्या, अनर्गल प्रचारित कर रहा होगा। मुझे मालूम भी तो पड़े। मैंने दो ही दिनों में, उसे अनब्लॉक कर दिया था।
तब देखा कि एक आयोजन को, नागरिकों के लिए और विशेष कर हमारे ही कौम पर ज्यादा ख़तरा बताते हुए, वह लिख चुका था।
जिसमें, अपनी मूर्खता भरी कोशिश में, हमारी कौम से अंधविश्वास त्याग, कोरोना से लड़ाई में सहयोग करने का आह्वान कर रहा था। मैंने, यह कहते हुए आपत्ति दर्ज कराई कि आयोजन तो और भी किये गए हैं, चूक तो और जगहें भी हो रही हैं, आप उनका उल्लेख थोड़े में लिखते हैं।
क्यों नहीं? जागृति उनमें जगाते, हमारी कौम की, हम फ़िक्र कर लेंगे। हमारे इष्ट हमें बचा लेंगे। यह हमारी आस्था और विश्वास है। उसने, कुटीलता भरा जवाब फिर दिया कि माना, समझ की कमी हमारे लोगों में भी है। मगर अपेक्षाकृत, वे ज्यादा समझदारी का परिचय दे रहे हैं। आप ही, बतायें कि मैं समझदार को क्यूँ समझाऊँ, जो कम समझ दिखा रहे हैं, अपने प्रयास उनमें जागृति में क्यूँ न लगाऊँ? आखिर, मेरे सामर्थ्य सीमित जो हैं।
मैं झुँझलाई थी। कहा था, हमारी कौम की जागृति का ठेकेदार बनने की जरूरत नहीं है, आपको।
फिर धमकाया था, एडमिन को पोस्ट रिपोर्ट करती हूँ।
वह कायर फिर डर गया था, उसने पोस्ट खुद डिलीट कर दी थी।
दो दिन फिर मैंने, उसे लेकर, बहुत चिंतन मनन किया था, मुझे तरकीब सूझी थी।
मैंने उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड की थी। उसने उसी पल, एक्सेप्ट कर ली थी। ऐसे कि जैसे, उसे इस बात का ही, इंतजार था।
उससे फोन नं. ले, मैंने व्हाट्सअप में उसे ऐड किया था।
उसकी अगली पोस्ट जिसमें भी कथ्य कोरोना पर ही था। और लक्ष्य हम पर भी, मैंने तरकीब के तहत, 'मैं उसके तर्क से सहमत हूँ', दिखाते हुए प्रशंसा के कमेंट दिए थे। वह खुश हो गया था।
फिर मैंने, व्हाट्सअप संदेश किया था। क्या आपसे, वीडियो कॉल पर बात हो सकती है?
उसने शीघ्रता से ऐसे जल्दबाजी में हामी भरी थी, कि कहीं, मैं अपने ख्याल से फिर न जाऊँ!
तुरंत ही, उसने खुद से वीडियो कॉल किया था, जैसे कोई, अपनी प्रेमिका के वीडियो कॉल की, प्रतीक्षा में हो।
मैंने कॉल काट दिया था, संदेश में लिखा था- 'अभी नहीं, अभी मुझे कुछ काम हैं।
फिर मुझे, खुद पर आश्चर्य हुआ था। मैं, अपनी डीपी में, एक सिने एक्ट्रेस की पिक लगाती रही थी। मैं असली रूप में सबके सामने नहीं आती थी।
इसलिए उसके सामने, स्वयं, कॉल पर जाने के पहले, मैंने बालों की रंगाई की थी। थ्रेडिंग, फेसिअल, जितना घर में हो सकता था, किया था।
बात करने के लहजे की रिहर्सल भी की थी। फिर, आँखों में, काजल भी लगाया था।
सब ऐसे, जैसे किसी, सिने इंटरव्यू/ऑडिशन के लिए तैयार हुईं हूँ।
उसे, कॉल किया था।
रिप्लाई के जगह संदेश मिला था, अभी मैं, एक ऑपरेशन की तैयारी में हूँ, ऑपरेशन से निबटने के बाद संदेश करूँगा।
तब, मुझे ज्ञात हुआ था कि वह डॉक्टर था। फिर बात होने में, दो दिन लगे थे ।
इस बीच मैंने, अपने सभी परिचित, रिश्तेदारों को, प्रधानमंत्री के किये जा रहे आह्वान अनुसार, करने को समझाया था।
इस बार भी मैंने श्रृंगार किये थे फिर कॉल किया था, वह कुछ थका दिखाई पड़ रहा था, अव्यवस्थित सा भी। मगर जितना वह, अपनी पिक में दिखाई पड़ता था उससे कम बूढ़ा, पहले मैंने हँस हँस के बात की थी उससे। फिर मैंने, बताया था कि दो दिनों से मैं, अपने रिश्तेदार और परिचितों को इस समय देश की जरूरत अनुसार चलने को, कॉल कर समझा रही हूँ।
उसने कहा था, मैं प्रसन्न हूँ, यह जान कर!
मैंने कहा था- अभी, ज़िंदगी बचाना ही, बुद्धिमानी है। आपसी नफरत से तो बाद में निबट लेंगे। उसने कहा था, ज़िंदगी इस बार बच गई तो, नफरत भी जाती रहेगी। फिर,
वह मुस्कुराया था।
मेरी आशा विपरीत, उसने कॉल खत्म करने में, जल्दबाजी दिखाई थी।
हाथ जोड़कर, अभिवादन करते हुए, कॉल खत्म कर दिया था। दो दिनों वह, सोशल साइट एवं व्हाट्सअप पर, सक्रिय नहीं दिखाई दिया था।
आज 3 अप्रैल 2020 को, खबरों में उसे, कोरोना संक्रमित होना बताया जा रहा है। वह संक्रमितों के इलाज करते, खुद संक्रमित हो गया है।
किसी समय मुझे, उसका खून कर देने का ख्याल आया था।
लेकिन,
आज मैं, इस "कोरोना वॉरीअर" की, ज़िंदगी के लिए दुआ कर रही हूँ ...