Moumita Bagchi

Others

4  

Moumita Bagchi

Others

उसके डैड की मुहब्बत -3

उसके डैड की मुहब्बत -3

3 mins
329


आज रूही की किस्मत सच में बहुत खराब थी। पंचायत- भवन में जाकर देखा तो मेन दरवाज़ें पर एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था। सूचनापट्ट पर लिखा हुआ मिला --

" इस समय मध्याह्न भोजन हेतु अवकाश है। कार्यालय पुनः पाँच बजे खुलेगी!"

रूही को घर वापस भी जाना था। उसकी साढ़े पाँच बजे की वापसी गाड़ी थी-- पाँच बजे तक रुकने का मतलब था आज इसी गाँव पर रात बिताना!

क्या करे, न करे-- !!थोड़ी देर तक वहाँ खड़ी- खड़ी रूही यही सोचती रही। भूख मारे उसकी हालत खराब थी,,, चल- चल कर अब बहुत थकान सी महसूस होने लगी थी! रूही थोड़ी देर के लिए वहीं पंचायत भवन की सीढ़ियों पर बैठ गई।

साथ में लाए पर्स को खंगालने पर वहाँ से एक डेयरी मिल्क का छोटा सा पैकट निकला। वह भी गर्मी से बिलकुल पिघला हुआ! शायद कभी उसकी बेटी इस पर्स में रख कर भूल गई होगी।

पर इस समय वह पिघला हुआ चाॅकलेट भी रूही की भूख मिटाने में मददगार साबित हुआ! वही खाने के बाद रूही ने भवन में आगंतुकों के लिए रखे हुए पानी की सुराही में से एक गिलास ठंडा पानी निकाला और गटागट उसे पी गई!! तब जाकर रूही की जान में जान आई। और वह पुनः बरामदे की सीढ़ियों पर आकर बैठ गई।

रूही वहीं पर बैठी हुई समय काटने के लिए इधर- उधर देख रही थी। पंचायत भवन का पक्का एक मंज़िला भवन था। बरामदे पर बिजली का पंखा घूम रहा था।

आसपास के घर भी सारे पक्के मालूम हो रहे थे! काफी साधन- संपन्न गाँव था। कई मकानो के सामने गाय बंधी हुई थी जो इस समय मारे गर्मी के बैठे- बैठे ऊँघ सी रही थी। और उसी हालत में, कभी- कभी आँखें बंद किए हुए ही, जुगाली भी किए जा रही थी। कुछ एक घरों के सामने दुपहिए खड़े थे और कई एक के आगे ढकी हुई कारें भी थीं! सड़क पर धूल बहुत उड़ती थी, शायद इसीलिए उन कारों को ढक कर रखा गया था जो रोज़ इस्तेमाल में न लाए जाते हो!

रूही को बैठे बैठे अब करीब पौना घंटा हो गया था कि वहाँ पर एक चौकीदार आया। उसके हाथ के दोने में कुछ जामुन थे। उसने वे जामुन लाकर रूही की ओर बढ़ा दिया। और बोला,,,

" काफी वकत से देख रहा हूँ आपको,यहाँ बैठी हुई हैं, किसी से मिलना है क्या? बाबू लोग अब छह बजे ही आवेंगे!"

" ओह,,, इतना समय? तब तो बड़ी देर हो जाएगी, मुझे!" कहकर रूही ने एक जामुन को अपने दाँतों से काटा। जामुन बड़े हृष्ट- पुष्ट थे। भूखे पेट में उनको खाना उसे बेहद अच्छा लगा!

" आप तो इस गाँव की नहीं लगती, कभी देखा नहीं मैंने आपको यहाँ पहले। किससे मिलना है?" चौकीदार ने पुनः उससे पूछा।

" जी, सतवीर सिंह जी से मिलना था और उनकी धर्मपत्नी ऋतु जी से।"

" कौन सतवीर सिंह?"

" वही जो दो साल पहले अपनी ब्याहता के साथ शहर से गाँव रहने के लिए आए थे। उन्होंने जो पता दिया था वहाँ पर अब निखिलेश शर्मा जी का परिवार रह रहा हैं!"

इस बार वह चौकीदार वहीं पर रूही के सामने ज़मीन ऊकरूँ हो कर बैठ गया। कुछ देर तक याद करने की मुद्रा में रहने के बाद फिर रूही से बोला--

" हाँ,,खूब याद आया, आए थे एक ऐसे सज्जन यहाँ पर। खेती बारी करके जिन्दगी बीताने के लिए,,शहर से। साथ में उनकी लुगाई भी थी। हाँ हाँ,, वही हैं ,,शायद!"

आशा की एक किरण हाथ लगते ही रूही उत्तेजना में उठ खड़ी हुई थी।

" बताइए न कहाँ मिलेंगे वे इस वक्त?"

"अच्छा वह---- मैं ठीक- ठाक तो नहीं जानता,,, पर वे हर मंगलवार को गाँव के हनुमान मंदिर पर मत्था टेकने शाम को जरूर आते हैं। आज मंगलवार हैं न,, वहीं पर मिलेंगे।"

इसके बाद रूही ने उससे हनुमान मंदिर का पता पूछ कर उस तरफ भागने लगी। उसके हाथ में सिर्फ दो ही घंटे रह गए थे। शायद जाने से पहले अंकल और आंटी उसे मिल जाए!

जाते समय चौकीदार को जामुन के लिए धन्यवाद देना न भूली वह!

क्रमशः



Rate this content
Log in