Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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उपहार, साड़ी …

उपहार, साड़ी …

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बड़ी माथापच्ची करने के बाद मैंने, तय किया था कि दीपावली के उपहार में, माधुरी एवं रूपा में, एक को 800 रुपये की नई साड़ी एवं एक को बेटू की 1 साल पुरानी बच्चा साइकिल दूँगी। 

मेरे यहाँ, माधुरी, रसोई का काम तथा रूपा, झाड़ू, बर्तन एवं कपड़े करती है। 

हमने, यह साइकिल, पिछले वर्ष 1850 रुपये में खरीदी थी। बेटू के बड़े हो जाने से वह, उसे छोटी लगने लगी है। अतः वह, अब इसे चलाता नहीं है। साइकिल अब, एक कोने में पड़ी रहती है, जबकि लगती वह, अभी नई जैसी ही है। 

आज, जब रूपा काम करके जाने लगी तब मैंने, उसके सामने, दोनों चीजें रख दीं कहा - इसमें से जो तुम्हें चाहिए वह, दीवाली गिफ्ट तुम ले लो। 

कह कर मैं, उसके चेहरे के भाव पढ़ने लगी। स्पष्ट दर्शित हो रहा था कि रूपा दोनों ही चीजों के लिए ललचा रही थी। फिर मेरी सी माथापच्ची में ना पड़ते हुए साड़ी का त्याग करते हुए उसने निर्णय ले लिया, वह, 

मुझसे बोली - मैडम जी, मैं, साइकिल ले लेती हूँ। 

मैं जानती थी कि रूपा का बेटा, मेरे बेटू से 10 महीने छोटा है। वह भी एक माँ है। सहज था कि साड़ी पर, साइकिल को महत्व देगी। 

फिर भी मैंने पूछा - रूपा, क्यों साड़ी तुम्हें पसंद नहीं आई? 

रूपा ने उदास सा होकर कहा - पसंद तो बहुत आई है। मगर टिंकू, साइकिल पाकर बहुत खुश होगा। मैं, पुरानी साड़ी में, थोड़े पैबंद लगाकर काम चला लूँगी। ऐसा करने से, कम से कम अपने पैदा किये बच्चे के प्रति कुछ कर्तव्य तो मैं, पूरे कर सकूँगी।

वाह उसका कर्तव्य विवेक, उत्तर सुनकर मैं, होंठों पर एक खिसियाई सी मुस्कुराहट ही ला सकी थी। 

फिर रूपा, साइकिल उठा कर यूँ गर्व से गई थी। जैसे उसने, किसी प्रतियोगिता का जीता हुआ गोल्ड मेडल, अपने हाथों में ले रखा हो। 

उसकी यह अदा, मेरे लिए एक दर्पण मानिंद थी। उस दर्पण में, मुझे अपना कद, उसकी तुलना में बौना सा दिखाई दिया था।

मैं, एक नारी थी, वह भी, स्वयं मल्टीनॅशनल कं. के जॉब से अच्छा कमा लेने वाली। माँ तो मैं थी ही! अतः नारी सुलभ करुणा तथा संवेदनशीलता मुझमें अब भी अस्तित्व रखती थी। 

मेरी रुलाई फूट पड़ी थी। बेटू ने यह देखा तो तुतलाते हुए पूछने लगा - मेली मम्मा, छोटा बच्चे जैसा, क्यों लो लही है?

मैंने आँसू पोंछे थे। बेटू को गोद में उठाया था। फिर उसके माथे को चूमते हुए कहा - बेटू, आपकी मम्मा भी, आज छोटी हो गई है इसलिए रो रही है। 

बेटू, कुछ समझ नहीं सका था। 

फिर संध्या के समय रोहन से मैंने, अपने हृदय की व्यथा शेयर की थी। उन्होंने कहा- छोटी अनुभव कर रही हो तो, कुछ बड़े होने का उपाय कर लो। 

तब मैंने, रोहन से कहा - मैं, ऑनलाइन एक साड़ी आर्डर कर रही हूँ। जो सीधे रूपा के एड्रेस पर डिलीवर हो जायेगी। 

रोहन ने मुस्कुरा कर कहा - हाँ, यह ठीक होगा। 

पाँचवे दिन रूपा सुबह काम पर आई तो बहुत खुश दिखाई पड़ रही थी। मुझे, उसकी ख़ुशी का कारण समझ में आ गया था। तब भी मैंने नारी सुलभ वाचालता के वशीभूत, उससे पूछ लिया - क्या, बात है रूपा, आज बहुत खुश दिखाई दे रही हो?

रूपा ने चहकते हुए कहा - मैडम जी, कल शाम एक कूरियर आया जिसने मेरा अगूँठा कागज पर छपवा कर, एक साड़ी का पैकेट मुझे दिया है। 

मैंने पूछा - साड़ी, कैसी है, किसने भिजवाई है?

रूपा ने कहा - नहीं पता मैडम जी! आपने उस दिन दिखाई थी साड़ी उससे भी बहुत कीमती और सुंदर है। मुझे लगता है, गरीबों को यह दीपावली उपहार, मोदी जी भिजवा रहे हैं, शायद। 

मैं चुप रही थी। इस बार यह बताकर कि साड़ी मैंने, भिजवाई है। मैं पुनः रूपा के सामने छोटी नहीं होना चाहती थी…  



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