Arun Tripathi

Others

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सोने की झुमकी

सोने की झुमकी

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उन्होंने शांति से अपनी पत्नी से कहा..."समझने की कोशिश करो पप्पू की अम्मा ! तुम अभी जो कह रही हो। वो संभव नहीं है। मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं कि मैं तुम्हारे लिये स्वर्ण आभूषण खरीद सकूँ।....

तुम सोने की झुमकी की बात कर रही हो...मेरे पास कान के टाप्स खरीदने के भी पैसे नहीं हैं।" 


लगातार एक सप्ताह से सुबह शाम इसी मुद्दे को लेकर पति पत्नी में रोज कहासुनी होती। बात ये थी कि पत्नी के मायके में शादी थी और वो कान में नई झुमकी पहन कर जाना चाहती थी। यहाँ उसकी भी कोई गलती नहीं थी...उसकी सभी बहनें और भाभियाँ वहाँ एकत्र होतीं...उन सब में पहनने ओढ़ने की होड़ मचना स्वाभाविक था और आत्मसम्मान बचाने के लिये झुमकी का होना नितांत आवश्यक था...


शादी को अभी पंद्रह दिन शेष थे और मामला संगीन होता जा रहा था। जैसे जैसे विवाह का दिन नजदीक आ रहा था...पति पत्नी के बीच तनाव बढ़ता जा रहा था और बच्चे...साँस रोके इस शीतयुद्ध के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस बीच भारत सरकार ने इस झगड़े में हस्तक्षेप किया और छह माह के अग्रिम बोनस की घोषणा कर दी...विनोद बाबू को शादी के मात्र तीन दिन पहले इतना पर्याप्त पैसा मिल गया कि उनकी विकराल समस्या का फौरी समाधान हो गया और अगले दिन बच्चों के नये कपड़े...पत्नी की डिजाइनर साड़ी...कान की झुमकी और अन्य दीगर सामान जो पत्नी समझती थी कि वे बहुत जरूरी हैं...के साथ विनोद बाबू मुस्कुराते हुए घर आये और उनकी पत्नी ने खुश हो कर उन्हें ढेर सारा आशीर्वाद दिया।


शादी का दिन आया और बच्चों के साथ विनोद बाबू की पत्नी हवा में उड़ती हुई मायके पहुँची। शादी ठीक ठाक संपन्न हुई...पत्नी ने मायके में दिल खोल कर खर्च किया...बहनों और भाभियों के मुख पर ईर्ष्या जलन के भाव देख उसका दिल बल्लियों उछल रहा था...उसका पहनना ओढ़ना...खर्च करना सार्थक हो गया था।

जिस तरह वह खुशी से उड़ती हुई मायके गई थी उसी तरह वापस आयी...


एक सप्ताह बाद...

एक दिन विनोद बाबू ऑफिस से घर लौटे तो कुछ अनमने से थे। उन्हें सीने और कंधे पर दर्द की अनुभूति हो रही थी। उन्होंने चाय के साथ दर्द की दवा खायी और लेट गए...लेट गए तो उठे ही नहीं।

पत्नी जगाने गई...हिलाया डुलाया तो दिल धक से रह गया...वे तो बेहोश थे।


तीन दिन बाद विनोद बाबू को होश आया तो वे अस्पताल में थे.......इस बीच उनका इमरजेंसी ऑपरेशन हुआ और पंद्रह दिन अस्पताल में बिता कर वे घर वापस आये।..

स्थिति सामान्य हुई तो उन्होंने पत्नी से पूछा।....

" ऑपरेशन...दवा और अस्पताल में तो बहुत पैसा खर्च हुआ होगा...कहाँ से इंतजाम हुआ ? " 

पत्नी बोली..." पप्पू के पापा ! तुम ही मेरी सबसे बड़ी पूँजी हो...तुम्हारे आगे दुनिया की दौलत मेरे लिये दो कौड़ी की है। मैंने चार लाख का इंतजाम कर लिया और सब ठीक हो गया।" 

कहाँ से किया इतने पैसे का इंतजाम ?...विनोद बाबू सशंकित होकर बोले।

पत्नी बोली..." चिंता न करो...मैंने किसी से कर्जा थोड़ी लिया...मेरे पास तुम्हारी दी गई सोने की झुमकी...सोने के कंगन और वो जड़ाऊ हार था जो तुमने तीन साल पहले दिया था...मैंने ये सब कुछ बेच दिया और चार लाख मिल गए। तुम ठीक हो गए...यही बहुत है मेरे लिये...गहने फिर आ जायेंगे...लेकिन हाँ।.वो झुमकी बहुत सुन्दर थी।



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