श्राद्ध
श्राद्ध
भारतवर्ष का तो पता नहीं लेकिन हमारे राजस्थान में श्राद्ध नामक एक परम्परा है।
जिसमें माना जाता कि जिस तिथि को आदमी मरता है बारह माह के अंतराल पर उसी तिथि को अपने पूर्वजों को खाना खिलाया जाता हैं।
हमारे घर में भी दादाजी के दादाजी का श्राद्ध था... (हमारे गांव में इकलौता परिवार है कि हमारे परिवार में दादाजी के पिताजी-परदादा) दादाजी, पिताजी और हम भाई - बहन एक भाई की शादी की हुई है और उसकी बेटी यानी मेरी भतीजी... 5 पीढ़ी जीवित है ।
हां तो श्राद्ध था और हम सभी सुबह जल्दी उठकर स्नान करने लगे।
सभी ने स्नान किया और तैयारियो में जुट गए।
रात को जागरण का आयोजन भी किया गया था।
दिन में शहर गए और जरूरत का समान खरीदा शाम को घर पहुंच कर जागरण की तैयारी करने लगे और फिर जागरण शुरू हुआ।
हम सभी सदस्य जागरण में बैठ गए और जागरण के साथ साथ हमें तालियां बजाकर भजन गुनगुनाने थे, तो हम सभी ये भी करने लगे।
फिर सुबह हुई और परंपरानुसार दादाजी को छत्त पर खाना रखना था।
तो खाने में परदादा की पसंद की राजस्थानी थाली रखी गई और यही हमें खाना था तो
हम इंतजार कर रहे थे, दादाजी ने पत्तल में खाना रखा था।
की कब दादाजी काक बनकर आयेंगे और भोग लगाएं।
खाने में सांगरी की सब्जी और बाजरे की रोटी के साथ साथ रबड़ी भी थी और भी राजस्थानी व्यंजन थे।
अब इंतजार की घड़ियां ख़तम हो चुकी थी क्योंकि करीबन 2 बजे मेरे परदादा का काक आया और भोग लेकर चला गया।
अब हम खाने को बैठे और सबने खाना खाया और फिर दादाजी की हार वाली फोटो के फेरी दी और नमन किया।
फिर शाम को खीर बनाई गई और रात को छत पर रखी जिसे सुबह पूरे परिवार को खाना था, हमने सुबह खीर खाई।
सभी सदस्य टिप्पणियां कर रहे थे लेकिन दादाजी खामोश थे और गुनगुना रहे थे कि खाना अच्छा लगा ना और आसमान की तरफ देखा और बोले "हैप्पी श्राद्ध पापा" और इसी के साथ सभी हंस पड़े।