रिश्तों की मिठास
रिश्तों की मिठास
बात हमारे बचपन की है। हम छह भाई बहनों का परिवार था, बड़ी दीदी की तो शादी कम उम्र में ही हो गई थी। बाकी हम पाँच थे घर में ,तीन भाई और तीन बहन। पिता हमारे बहुत अनुशासन प्रिय और माँ ममता की मूर्ति।
उस समय एक कुल्फी जमाने की मशीन बड़े भैया लेकर आये , हम सब बड़े खुश ,घर की जमी कुल्फी खाने को मिलेगी । चालू हुआ उसका प्रोसिजर । पहले दूध को बड़ी सी कड़ाही में खूब औटाया गया गुलाबी होने तक , फिर उसमें काजू ,किशमिश ,चिरौंजी , इलायची डाली गई फिर ठंडा होने पर मशीन के डिब्बे में डाला गया और उस डिब्बे के बाहरी हिस्से में खूब सारी बर्फ और उस पर नमक।
अब बारी आई उसे घूमाने की उसममें हैंडल लगा था उसको घुमाना था लगातार, तभी वह कुल्फी जमने वाली थी , अब सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे ,बड़े भैया ने कहा "मेहनत करनी पड़ेगी तभी मिलेगी कुल्फी ।"
सब भाई बहनों ने बारी बारी से उसे दो तीन घण्टे घुमाया तब जाकर तैयार हुई कुल्फी ।भैया ने उसे तैयार करवाने में सबका पसीना बहवा दिया । लेकिन जब कटोरियों में डाल पहला चम्मच मुँह में कुल्फी का दिया सबके मुँह से निकला " वाह क्या जायका है । "
कुछ सबकी मेहनत का फल था कुछ सबके साथ का । सच में फिर वैसा टेस्ट ,इतनी आइस क्रीम और कुल्फी खाई ,कभी ना आया । जो मिठास उस कुल्फी में थी वो आज भी हम सब के मुँह में है जब भी हम साथ होते हैं , उसका जिक्र जरूर होता है ।
माँ -पिताजी तो रहे नहीं पर आज भी हम सब भाई बहनों के रिश्तों में भी वैसी ही मिठास बनी हुई है और ईश्वर करे हमेशा बनी रहे ।
