Sajida Akram

Others

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Sajida Akram

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रेडलाइट

रेडलाइट

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नीरज स्वभाव से सीधा-सादा इंसान था ,बस उससे एक ग़लती हुई थी जब वो शहर में पढ़ने गया, तो  दोस्तों ने एक दो बार "रेडलाइट एरिया"में ले गए थे, तो नीरज भोला-भंडारी वहां की कोठे वाली लड़की से प्यार कर बैठा ,अब उसका ज़्यादा समय वहीं गुज़रता ।


पढ़ाई में भी पिछड़ गया।छोटे शहर से था।बड़े भाई और पिता जी की "सोने -चांदी का व्यापार था। पैसा भर-पूर मिलता तो कोठे वाली जो बड़ी औरत थी खूब पैसा ऐंठती ।उस लड़की जिसको नीरज पसंद करता था ,

रोज़ी सुन्दर नाज़ुक़ सी रंग गोरा शरीर भी भरा गठीला शरीर और आवाज़ में कशिश थी ।

रोज़ी भी नीरज को समझाती हमारा जीवन अंधकारमय है , हालांकि नीरज से वो भी प्यार करती थी। जब नीरज का पढ़ाई में रुझान ना देखा तो पिताजी ने उसे भी अपने व्यापार में हाथ बंटाने का कहा।तुम मेडिकल के इंट्रेंस टेस्ट में पांच साल से पास ही नहीं हो रहे हो ।


नीरज की मां ने लड़कियां देखने लगी के शादी कर देतें हैं । मां-पिता जी ने सोचा कि बुरी आदतों में पड़ गया है।नीरज ने मां से अकेले में कहा मां मैं एक लड़की से प्यार करता हूं। मैं उसी से शादी करूंगा ।


मां ने कहा ठीक है, मैं तेरे पिता जी से बात करती हूं। पिता जी ने सुना तो नीरज की मां तुम जो  ठीक समझो,देख लेतें है कि कौन परिवार से हैं ।


जैसे ही परिवार और समाज के बारे में नीरज ने बताया तो मां सन्न् रह गई। नीरज से बोली मैं किस मुंह से तेरे पिताजी को बताऊं कि हमारा सपूत एक वैश्या से प्रेम करता है।


पिताजी को मालूम पड़ा तो आगबबूला हो गए।इस नालायक़ को इसी वक़्त मेरे घर निकालो ।ये हमारी समाज में नाक कटवाएगा ।घर में बहुत कोहराम मचा।


नीरज अपनी ज़िद पर अड़ा रहा।अब तो बैखोफ उस रेडलाइट एरिया में जाता और ख़ूब शराब पीकर घर दो-,दो चार-चार दिन नहीं आता वहीं पड़ा रहता।


नीरज को रोज़ी  समझाती तुम अपने माता-पिता के बताए हुए रास्ते पर चलो ।काम में मन लगाओ और जहां वो कह रहें हैं,शादी  कर लो ।


एक दिन नीरज को बड़े भाई के साथ गुजरात व्यापार के सिलसिले में छह दिन के लिए जाना था।इस बीच नीरज के पिताजी उस कोठे वाली औरत के पास जाकर रोज़ी को ठिकाने लगाने के लिए मुंह मांगी कीमत देने को तैयार हो जातें हैं।


वो औरत अपने दलालों से रोज़ी को लखनऊ के कोठे वाली को बेच देती है। रोज़ी बहुत मिन्नतें करती है मुझे एक बार नीरज से मिल लेने  दो ।उसे रातों-रात गायब करवा दिया। रोज़ी ऐसी अंधेरी कोठरी में बंद कर दी गई।उसे रात है या दिन है किस शहर में है । चौबीसों घंटे पहरे में 


नीरज कोठे पर जाता है, तो रोज़ी नहीं मिलती ।ख़ूब शराब पीकर हंगामा करता है कोठे वाली मालकिन पुलिस बुला लेती है । मारपीट करने पर उतारू हो जाता है।


नीरज के भाई और पिताजी ज़मानत पर छुड़ा रातें है।नशे में धूत पड़ा रहता है।उसकी मां बहुत समझाती है।वो तो धंधे वाली है किसी ने पैसा दे दिया तो कहीं और बेच दिया है। 

 

नीरज को तो धुन सवार थी वो गाड़ी लेकर निकल जाता है रोज़ी को ढ़ूढ़ने, सालों बाद वह लखनऊ पहुंचता है । वहां एक  साड़ी के शोरूम पर नौकरी कर लेता है।


वहां रोज़ी जैसी दिखने वाली लड़की काम करती है।नीरज को लगता है ,ये मेरी रोज़ी है। वो लड़की किसी से बात नहीं करती है। सहमी सी रहती है।


नीरज  उसका पीछा करते हुए उसकी खोली तक पहुंच जाता है।उसका दिल मानने को तैयार नहीं की रोज़ी नहीं है। नीरज दो दिन तक उसकी खोली के बाहर बिना कुछ खाए पीए पड़ा रहता है तो रोज़ी उठा कर अंदर ले जाती है।


नीरज की ज़िद के आगे हथियार डाल देती है। हां मैं ही तुम्हारी रोज़ी हूं। फिर पूरा किस्सा बताती है कैसे मुझे अंधेरी कोठरी में कैद रखा ।


एक दिन उस कोठे पर पुलिस की दबिश पड़ती है और सब को पकड़ ले जाती है । हमें भी कोठरियों से आज़ाद कराती है ,सुधार गृह भेज देती है। वहां एक नेक मेडम हमें समाज में रहने लायक़ काम सीखाती है सिलाई-कढ़ाई का धीरे-धीरे मैं एक शोरूम पर लगवा देती है। पेट की आग तो बुझाना है रोजी-रोटी कमाने के लिए बस तुम भी वही काम करने आ जाते हो। 


नीरज और रोज़ी ख़ूब रोते हैं।नीरज भी कहता है मैं तुम्हें ढ़ूढ़ने सालों से निकला हूं आज मेरी खोज पूरी हुई।



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